पृष्ठ:कंकाल.pdf/११४

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पुजारने का, गुने अनुभव करने का अारा यौ। विधाम का निरपास, केयल भगवान् के नाम के साथ ही निकलता है बेटी । यमुनो गद्गद हो रहीं यो । एक दिने भी ऐसा नही बोतता, मिच दिन गोस्वागी आश्रमवासियों को अपनी सान्जनाममी वाणी से सन्तुष्ट में करते । यमुना ने कहा-महाराज, बौर कोई सेवा हो, तो आशा दीजिए। मंगेत इत्यादि नै मुहारी अनुरोध किया है कि मैं सर्वसाधारा के नाम के लिए धाधम में कई दिनों तक सर्पिजनिक प्रवन गरू। मद्यपि में इरो अस्वीकार थरता रहा, किन्तु थाध्य होगर भुमो वरना ही पड़ेगा । यह पूरी स्वच्छ रहनी याङ्गिए। कुछ बाहरी लोगों के आने की सम्भावना है। यमुना नमस्कार *वे चली गई। | गुप्तधारण उपचाप बैठे रहे । वे एक्ट गन्द्र की मूति की ओर देख रहे थे । यह मूत वृन्दावन की और मूतियों से विलक्षण थी । एक श्याम, कर्ज स्वि, यपक और प्रसन्न गम्भीर भूति खड़ी यी । बायें हाथ से कटि शै आवद्ध नन्दक पग यी भूठ पर अन्न दिगे दाहिने हुषि की अभय मुद्रा से आश्वासन की घोषणा करते हुए कृष्णचन्द्र बही महु मूर्ति, हृदय को इलपक्षों को शान्त कर देती पी 1 शिल्पी की कला सपल थी। वृष्णिरिण एकटक भूत को देय रहे थे । गोस्वामी को अषों से उस समय बिजली निकल रही थी, जो प्रतिमा को सजाय बना रही थी। कुछ देर के बाद उनकी आँखों से जलधारा गने लगौ । और मैं अप-ही-आप कहने लगे--मुम्ही ने प्रण किया था कि जब-जब धर्म को ग्लानि होगी, हम उसका उद्धार भरने के खिए आगे ! तो क्या अभी बिलम्व है ? तुम्हारे बाद एक भान्ति का दूत आमा था, वह दुःख को अधिक स्पष्ट बनाकर घना गया । विरागी होकर रहने का चपदेश ६ गवा; परन्तु उस शक्ति को स्थिर रखने के लिए शक्ति की रडी ? फिर से बर्बरता और हिरा सापड्य-कृत्य करने लगा हैपया अप भी विम्य हैं ? | जैसे मूति बिचलित हो उठी। | एक मात्रा ने बाहर नमस्कार दिया । ने भी धर्माद देनर इरा और भूभ पड़े। पूछा---मंगलदेव ! तुम्हारे प्रभारी मही हैं। आ गये है गुरुदेव ! उन सबो को काम बाँट दी और कर्तव्य राम दो। म प्रायः बहुत-से लोग देंगे। जैसी आज्ञा हो; परन्तु गुरूदेय ! मेरी एक पांका है। काह : १०५