पृष्ठ:कंकाल.pdf/१२७

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उराको साँचे में बनते और बिगड़ते ये; पर वह आसन्न समस्या हल करने में | असमर्थ था । घन नौ मठौर आवश्यकता ऐसा भूत प्रींचती कि वह इसके बाहर जाने में असमर्थ था । | चन्दा योनी लिये आई। श्रीचन्द्र उसको सौन्दर्य-छटा देखकर पलभर के निए घन-चिन्ता-विस्मृत हो गया। इदय एक यार नाच उठा। वह उठ बैठा । चन्दर ने सामने बैठकर उसकी भूख जगा दी । भ्यालू करते-करते श्रीचन्द्र ने कहा -नन्दा, तुम मेरे लिए इसनी कष्ट करती हो ! चन्द्रा- और तुमको इरा काप्ट्र में चिन्ता चौ है ? श्रीचन्द्र यही कि मैं इसी क्या प्रतिकार कर सकेंग ! चन्दा–प्रतिकार मैं स्वयं कुर कुँगी । हाँ, पद्ले पह तो बताओं-अत्र तुम्हारे ऊपर कितना ऋण है ? । . श्रीचन्द्र-अभी बहुत है। चन्दा क्या माहा ! अभी बहुत है? श्रीचन्ह , अमृतसर की सारो स्थावर सम्पति भी बना है। एक लाख रुपया चाहिए । एक दीर्ध निःश्यारा लेकर श्रीचन्द्र ने थाली दान दें। हाथ-मुँह धोकर आरामकुर्सी पर जा लेदा अन्दा पास ही कुर्सी बीपकर बैठ गई। अभी यह पैंतीस से ऊमर की नहीं हैं । यौन है । जाने-जाने भर रहा है, पर उसके गुडौल अंग छोड़कर उससे गाते नहीं बनता। भरी-भरी गौरी बाहै चसने गले में ठानकर थचन्द्र की एफ चुम्बन तिमी । श्रीचन्द्र को पूण-पिता फिर सताने लगी । भन्दा नै देखा, श्रीचन्द्र के प्रत्येक श्वास में 'कृपया या!' का नाद हो रहा था । मह थीफ उठी। एक बार स्थिर दृष्टि से इसने श्रीचन्द्र के निन्तित बदन की ओर देखा, और बोली-एक उपाय है, करोगे ? श्रीपद ने खीचें होनार बैठते हुए पूछा-वह क्या ? बियवा-विवाह-सभा में चलकर हम लोग...---फद्दतै-कते चन्दा ः गई। श्योंकि, भीषन मुस्कराने सगी या । उसी हँसी में एक मामय पंम्य था । पन्दा तिलमिला उठी। उसने कहा- तुम्हारा सय प्रेम झूठा या ! श्रीचन्द्र ने पूरै जावसायी के ढंग से कहा-यात क्या है, मैंने तो कुछ नहीं भी महीं और तुम लगी बिगड़ने ! • चल्दा--मैं तुम्हारी हुसौ का अर्थ समझती हैं। .. श्रीफन्द्र कदापि नही ।, स्त्रियाँ प्रायः सुनवः जाने का कारण सब बातों में ११८ : प्रमोद यादमय