पृष्ठ:कंकाल.pdf/१२८

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निकाल जैसी है। मैं तुम्हारे भोलेपन पर हूँरा रहा था। तुम आनखी हो कि माह के व्यवसाय में सो मैंने कभी का दिवाला निकाल दिया है, फिर भी वही प्रश्न । | पन्दा ने अपना भाय संभालते हुए कहा- ये सब तुम्हारी बनावटी या है। मैं जानती हैं कि तुम्हारी पहली स्त्री और ऐसार तुम्हारे लिए नहीं के बरा- बर है। जराके लिए कोई बाधा नहीं। इग-तुम जय एक हो जायेंगे, चैन सब सम्पत्ति तुम्हारी हो जायगी ! | श्रीचन्द-यह तो यों भी हो सपना है; पर मेरी एक राम्मति है, इसे मानना-न-भानना हुम्हारे अधिकार में है। है बति बड़ी अच्छी ।। घन्दा--यह क्या ? थीचन्द्र ने एक बाण में हिंसाय वैठा लिया। उनके लिए रुपयों का नया नया प्रबन्ध सोचना साधारण बात थी। उसने ठङ्गरकर बद्धी गम्भीरता से कहा –जाती के लिए सम्बन्ध खोज लिया है; पर यह तुम्हारे प्रस्ताव में अनुसार नपने में न हो रायेगा । चन्दा-क्यों ? श्रीचन्द्र-तुम जानतो हो कि विशम गैरे सड़के के नाम से प्रसिद्ध है और गगी में अमृतसर की गन्छ भनी नहीं पहुंची हैं। मैं यदि तुमसे विधना-विवाह वर नेता हैं, वो इस सम्बन्थ में अड़चन भी होगी, और बदनाम भी । मया तुगको बह जामाता पसन्द नहीं । | चन्दा ने एक बार उल्लास में बड़ी-बड़ी अखें खोजफर देखा और वोर्स- यह तो बडो अच्छी बात सोची ! | श्रीचन्द्र ने हा—तुमको यह जानकर और प्रसन्नता होगी कि मैंने जो कुछ अपये किशोरी को भेजे हैं, उनसे उस चालाक स्त्री ने अच्छी जमीदारी बना ली है। शौर, फाशी में अमृतसर यानी कोठी को बट्टी घ्राक है। वही कर लाल का म्याहू हो जाएगा । तब, हुम नौग यहाँ की सम्पत्ति और व्यवसाय से आनन्द होगे । किशोरी घन, बेटा, बहू लेकर संतुष्ट हो जायेगी | क्यो कैसी रही । चन्दा में मन में सोचा, इस प्रकार मह काम हो जाने पर, हर तरह से सुविधा रहेगी। सभा के झूम लोग विद्रोही मी नहीं रहेंगे और नाम भी बन आयगा । यह प्रशन्नतापूर्वक राहुमत हुई । दूसरे दिन के प्रभात में बड़ी स्पूत यी ! श्रीचन्द्र और भन्दा बहुत प्रश्न हो उठे । बगौरी की हरियाली पर अधेि पड़ते ही मन हुल्फी हो गया । चन्दा ने आज याय पोकर हो जाऊँगी। कंकाल : ११६