पृष्ठ:कंकाल.pdf/१६३

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गरी माँ ने कहा-अब शोक करके क्या होगा, लौरज को आपदा में न छोड़ना पाहिए। यह तो मेरा पनि है कि इस समय मैं तुम्हारी सेवा के लिए शिनी तरह मिल गई। अय राय भूल जाना चाहिए । दिन बचे है, माप्तिा के नाम पर वाट लिए जायरी ।। मिरजा में एक लम्बी साँग्र लेपर कहा-शबनम ? मैं एक पागत था—मैन समझा , गैरे मुख मा अन्त नही; पर आज ? |छ नहीं, कुछ नही, मेरे मालियः ! रार अा है, मब अच्छा गा । इसकी दया में सन्देई ने करना चाहिए । अव में भी पास चली आई यी, मिरजा ने मुझे देखकर सकेर से पूछा ! भी ने फहा---एसी इंडिया को छः महीने का पेट में लिए मैं यहाँ काई थी, और यी हुल-मिट्टी में खेलती हुई यह इतनी यही हुई। मेरे मालिक ! तुम्हारे विरह में पही तो गेरी आँखों नौ ठरू यी तुम्हारी निशानी ! मिरजा ने मु गलै से लगा लिया । माँ ने कहा-बेटी ! यही तर पिता है। मैं न जाने क्यों रोने सगी । हम सब मिलकर बहुत रोय। इस रोने में बड़ा सुप्त था। रामय में एक साम्राज्य को हाथ में लेकर चूर कर दिया, बिगाड़ दिया; पर उसने एवः सोपी व कोने में एक उदा : स्वर्ग वा दिया। हम लोगों के दिन भुज से बीतने लगे। गनि-भर में मिरजा के आ जाने रो एव आप्तयः छा गया। मेरे पानी का बुपा चैन से चाटने पगा। सोमनाय गुन्ने हिन्दी पड़ने लगे, और मै, माता-पिता की गोद के सुख में वन खो। मुस्त्र के दिन बड़ी शीवता से ख्राि है । एक पर के सत्र महीने देवनेदेख चौत गर्थे । एक अध्या में इम सब लोग अलाव के पास बैठे थे । क्रिया बन्द थे । सदी में कोई कमी नहीं चाहता था। औरा से भोगी रान भारी मालूम होती थी । धुओं झोस के योन से ऊपर नही उठ सकता था। सोमनाथ * नाहात्र बरफ पहुँगा, ऐसा रग है। ची संवय बुआ ने फिर कहा-- और टाका नी ।। सेव लॉग जोकन हैं। गर्थे । मिरजा ने सनर नहा- क्या तू है। उन सबो का भेदिया है। गही सरकार ! गहू देश ही ऐर है, इसमें नूजर को... या की वात काटदै हुए सोमदेव ने कहा-हाँ-हां यहां के गुजर गई मानक है। १५२ : असार याय