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पृष्ठ:कंकाल.pdf/१७४

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मुत्ते इसकी आशंका पहले हो यो । अपने मुचे शरण दी है। इसलिए याला को मैं प्रतारित नही कर सकता । गयोकि, मेरे हृदय में दाम्पत्य जोवन की सायना नै सामी यची न ही । सिंपर भी आप जानते हैं कि मैं एक सन्दिग्ध हत्यारा मनुष्य हैं ।-नये ने इन बातों को महकर जैसे एक बोझ उतार फेकने गौ सांस ची हो । | बदन निरुपम और हताश हो गया। याती जैसे इस विवाद से एवः परिचित असमंजस में पड़ गई। उसका इंम घुटने क्षगा। सज्जा, क्षोभ और अपनी दयनीय दशा से उत्ते अपने स्त्री होने का गन्दै अधिव वैग से के देने लगा। वह उसी दाण नये से अपना सम्बन्ध हो जाना, जैसे अत्यन्त आवश्यक समझने लगी थी। फिर भी मह उपेदा यह सह न सकी। उसने रोकर बदन से कहाथाप मुले अपमानित कर रहे हैं, मैं अपने यहाँ पसे हुए मनुष्य से कभी म्याहू न गरूंगी। यह तो क्या, मैंने अभी व्याह करने का दिचार भी नहीं किया है ! मेरा उद्देश्य है-मदना और पढ़ाना । * निश्चय कर चुकी हैं कि मैं किसी मालिकाविद्यालय में पढ़ाऊँगी । एक दाणभर के लिए बदन के मुंह पर भीपण भाव नाच उठा । वह युद्दान्त मगुप्य हुपकदियों से जकड़े हुए बन्दी बैः ममान किट ढिा कर पोला—तो अनि से मेरा-तेरा कोई सम्यों नही-थोर एक ओर चल पडा ।। | नये गुपचाप पश्चिम के आरक्तिम आग की ओर देखने लगा । गाला रोष और क्षर से फू रही थी, अपमान ने उसकै हुद्दय की क्षत-विक्षत कर दिया | यौन से भरे हुदम यी महिमामयी कल्पना, गोली की पूरी में बिखरगे नगी । नो अपराधी की तरह इतना भी चाहा न कर सका कि गाजा को कुछ सान्त्वना देता । घह भी जय और एना और चला गया। कंकाल : १६३