पृष्ठ:कंकाल.pdf/२०७

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| गाला ने बदन का शब-दाह किया । वह बाहर तो सुनकर रोती न थी, पर उसके भीतर की ज्वाला की ताप उदाकी अपरक आंखों में दिखाई देता था । उसके चारों ओर मुना था। उसने गये से कहा मैं तो यह धन का संदूक न ले जा सकूंगी , तुम इसे ले लो। को ने कहा-भला में गया करूंगा गाला ! मेरी जीवन संसार के भीषण कोलाहल से, उत्सव से और उत्साह से ऊब गया है। अब तो मुझे भी मिल जाती है। तुम तो इससे पाठशाला की सहायता पहुँचा सकती हो । मैं इसे व पहुँना दे सकता हैं । कि नह सिर झुकातर भन-ही-मन सोचने संप-जिसे मैं अपना माह सकता था, जिसे माता-पिता समझता था, वे ही जब अपने नहीं तो दूसरो की वसा ।। गाला ने देवा, नये के मन में एक तीव्र विराग और धापी में व्यंग हैं 1 बह . पुतनाग दिनभर खारी के तट पर बैठी हुई सोचती रही। राहचा उसने मकर । दैया, नये अपने मुत्ते के साथ कम्यल पर बैठा है। उसने पुश–ो नये ! यहीं। तुम्हारी समगति है न ? हां, दरारी अच्छा इसका दुरारा उपयोग से ही नहीं पसा। और, यहाँ तुम्हारा अते रहना ठीक नहीं -नये में कही ।। हो पाषाना भी सूनी है--मंगलदेव पृन्दावन जौ एप हुरया में फैली हुई यमुना नाग को एक कुत्री के अभियोग को देख-देख करने गये हैं, पन्हे अभी कई दिन लगे । ढीच ही में टोनकर नरो ने पूछा-या महा ! यमुना ? बह हत्या में पता हां, पर तुम क्या पूछते हो ? मैं भी हत्यारा हैं गाता, इस से पूछता हैं। ऐसला किस दिन होगा ? इन्च तष मंगलदेन आगे ? । परसों न्याय को दिन नियत है। गाता ने कहा ।

  • गानो, आज ही तुम्हें पाठशाला पत्रा हूँ । अब पहा रहुना की भी नो।

अच्छी बात है जाओ, वह सन्दूक लेते भो । नये अपना नम्बस इटारर चला । और, गाला मुपचाप गुनहली कि वो सारा के जल में युवती हुई देय रद्दी थीदूर गए एप पर दौड़ा हुआ आ रहा था। उस निर्जन स्पान में पवन म-क गर बहू. रहा था । TT घg - ५- u3..अपने इषण-प्रयाह में बनी जति थी; पर जैसे उराको गति स्थिर 1८८-असत्य मंच,