पृष्ठ:कंकाल.pdf/२१९

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क्रिस भावों से भर गया। मान जन्म-मर को उसकी करता तीव्र पा लेगर्ने रौ वरप के समान गर्ने तगी हो । उमने यमुना में रोते हुए कहा----अमुना, गहों-न -जेट तारा | मुझे भी दमा कर दे। गैन शयन-भर बहुत-सी बुरी बाते की है; पर जो कठोरता तेरे साथ हुई है, वह नरक की अग से भी ती दाह उत्पन्न कर रही है । बेटी ! मैं मंगल को उ सम्म पहुचाने गई, जब उनै अँगरेज़ रा मे घण्टों को छुड़ाया था; पर वह न पहचान सना, उसे थे या भूल गई थी, जिसपर भेरे साथ मेरी बेटी थी, जिसकी बहू कल्पना भी नो कुर सकता था। वह छलिया मगल आज एषः दुग्न ली । पाह करने का सुख चिन्ता में निमग्न है। में जल उठती हैं बेटी ! मैं उसका सव भण्डाफोड़ कर देना चाहती थी; पर तुझे भी यहीं चुपचाप देखकर में कुछ न वर से। हाय रे पुष्प ।। नहीं नाच ! अब यह दिन चाह लौट आये, पर यह इदम गाड़ी में अवेगा ! मंगल को दुध पार पाते हैं महूंगी, अपने लिए मुग्न फोह छामी । चाची ! तुम मेरे दुःख की न हो, मैने धैर्यत' एक मगध किया है वह यही कि प्रेम करते समय साथ नहीं इकट्ठा कर लिया था, भरि कुछ मन्त्री से कुछ छग को जीभ पर उसा उल्लेख नही चरा लिया था; पर किया था प्रेम। चाची ! वृदि उसका यह पुरस्कार है, तो मैं उस स्यभार करती हैं ।—पमुगा में वाहा । पुरुप वितना बड़ा बना है वैट ! दङ्ग हुदय है विरुद्ध ही सो जीभ से कक्षा है । आश्चर्य है, उसे सत्य कहूवर चिल्लाता है ।—मित चाची ने कहा है। पर मैं एक नृत्य अपराध जी अभियुक्त है चनौ । आज मैरा पन्द्रह दिन ना बच्चा ! में कितनी निर्दम है! मैं उ। ना तो पल भौग रहीं । मुझे किया दुसरे ने ठीकर लगाई और मैंने दुसरे को कुरा । हाय ! संसार अपराम कथा इतना अपराध नही वरती, जितना मह दूसरों को उपदेश देकर मारता है ! जो मंगल ने मुस। विया, वही तो मैं हृदय के टुकड़े से, अपने में, कर चुकी हैं । मैंने सोचा था कि काश पर चढकर उसका प्रायश्चित्त कर सी, पर इबर ची –फाँसी से वो ! हाय-रे कोर नारी-जीवन ।। म आने मेरे लाल को घयाँ हुआ ? यमुना, नङ्गी-:-अब उस तात कठ्ठना चाहिए-रो रही । । जसरी अखिो में जितनी व कालिमा थी, उतनी बगलिन्दी में अज्ञ ! चाची ने जराकी अथुरा माछो हुए वाहा—वैट ! तुम्हारी भाल जीवित हैं, सुस्रो हैं ! ६०४ : प्रसव वाङ्मय