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तारा क्रोध और ग्लानि से फूल रही थी। निराशा और अन्धकार में विलीन हो रही थी। गाड़ी दूसरे स्टेशन पर रुकी। सहसा यात्री उतर गया।
मंगलदेव कर्त्तव्य-चिन्ता में व्यस्त था। तारा भविष्य की कल्पना कर रही थी।गाड़ी अपनी धुन में गम्भीर तम का भेदन करती हुई चलने लगी।
२४:प्रसाद वाङ्मय