पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/१६

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साहब की लाश आगे रख अपने सर पर दुहत्थड़ मार रोने लगा ।

जैसे ही महाराज की निगाह उस लाश पर पड़ी उनको तो अजब हालत हो गई । नजर पड़ते ही पहिचान गए कि यह लाश उनके छोटे लड़के सूरजसिंह की है । महाराज के रंज और गम का कोई ठिकाना न रहा । वे फूट-फूट कर रोने लगे और उनके साथ-साथ और लोग भी हाय हाय करके रोने और सर पीटने लगे ।

हम उस समय के गम की हालत और महल में रानियों की दशा को अच्छी तरह लिख कर लेख को व्यर्थ बढ़ाना नहीं चाहते, केवल इतना लिख देना बहुत होगा कि घण्टे-भर दिन चढ़ने तक सिवाय रोने-धोने के महाराज का ध्यान इस तरफ नहीं गया कि कुँअर साहब की मौत का सबब पूछें या यह मालूम करें कि उनकी लाश कहां पाई गई ।

आखिर महाराज ने अपने दिल को मजबूत किया और कुंअर साहब की मौत के बारे में बीरसिंह से बातचीत करने लगे ।

महा० : हाय, मेरे प्यारे लड़के को किसने मारा ?

बीर० : महाराज, अभी तक यह नहीं मालूम हुआ कि यह अनर्थ किसने किया ।

महाराज ने उन दोनों मुसाहबों में से एक की तरफ देखा जो बीरसिंह को लेने के लिए खिदमतगारों के साथ बाग में गए थे ।

महा० : क्यों हरीसिंह, तुम्हें कुछ मालूम है ?

हरी० : जी कुछ भी नहीं, हां इतना जानता हूं कि जब हुक्म के मुताबिक हम लोग बीरसिंह को बुलाने गये तो इन्हें घर न पाया, लाचार पानी बरसते ही में इनके बाग में पहुंचे और इन्हें वहाँ पाया । उस समय ये नंगे बदन हम लोगों के सामने आये । इनका बदन गीला था इससे मुझे मालूम हो गया कि ये कहीं पानी में भीग रहे थे और कपड़े बदलने को ही थे कि हम लोग जा पहुँचे । खैर, हम लोगों ने सरकारी हुक्म सुनाया और ये भी जल्द कपड़े पहिन हम लोगों के साथ हुए । उस समय पानी का बरसना बिल्कुल बन्द था । जब हम लोग बाग के बीचोंबीच अंगूर की टट्टियों के पास पहुँचे तो यकायक इस लाश पर नजर पड़ी !

महा० : (कुछ सोच कर) हम कह तो नहीं सकते क्योंकि चारों तरफ लोगों में बीरसिंह नेक, ईमानदार और रहमदिल मशहूर हैं, मगर जैसाकि तुम बयान करते हो अगर ठीक है तो हमें बीरसिंह के ऊपर शक होता है !