पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/३

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"लोग कहते हैं कि 'नेकी का बदला नेक और बदी का बदला बद से मिलता है' मगर नहीं, देखो, आज मैं किसी नेक और पतिव्रता स्त्री के साथ बदी किया चाहता हूँ। अगर मैं अपना काम पूरा कर सका तो कल ही राजा का दीवान हो जाऊँगा। फिर कौन कह सकेगा कि बदी करने वाला सुख नहीं भोग सकता या अच्छे आदमियों को दुःख नहीं मिलता? बस मुझे अपना कलेजा मजबूत करके रखना चाहिये, कहीं ऐसा न हो कि उसकी खूबसूरती और मीठी-मीठी बातें मेरी हिम्मत···(रुक कर) देखो, कोई आता है!"

रात आधी से ज्यादे जा चुकी है। एक तो अंधेरी रात, दूसरे चारों तरफ से घिर आने वाली काली-काली घटा ने मानो पृथ्वी पर स्याह रंग की चादर बिछा दी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। तेज हवा के झपेटों से कांपते हुए पत्तों की खड़खड़ाहट के सिवाय और किसी तरह की आवाज़ कानों में नहीं पड़ती।

एक बाग के अन्दर अंगूर की पत्तियों में अपने को छिपाये हुए एक आदमी ऊपर लिखी बातें धीरे-धीरे बुदबुदा रहा है। इस आदमी का रंग-रूप कैसा है, इसका कहना इस समय बहुत ही कठिन है क्योंकि एक तो उसे अंधेरी रात ने अच्छी तरह छिपा रखा है, दूसरे उसने अपने को काले कपड़ों से ढक लिया है, तीसरे अंगूर की घनी पत्तियों ने उसके साथ उसके ऐबों पर भी इस समय पर्दा डाल रखा है। जो हो, आगे चल कर तो इसकी अवस्था किसी तरह छिपी न रहेगी, मगर इस समय तो यह बाग के बीचोंबीच वाले एक सब्ज बंगले की तरफ देख-देख तर दांत पीस रहा है।

यह मुख्तसर-सा बंगला सुन्दर लताओं से ढका हुआ है और इसके बीचोंबीच में जलने वाले एक शमादान की रोशनी साफ दिखा रही है कि यहां एक मर्द