और एक औरत आपस में कुछ बातें और इशारे कर रहे हैं। यह बंगला बहुत छोटा था, दस-बारह आदमियों से ज्यादा इसमें नहीं बैठ सकते थे। इसकी बनावट अठपहली थी, बैठने के लिए कुर्सीनुमा आठ चबूतरे बने हुए थे, ऊपर बांस की छावनी जिस पर घनी लता चढ़ी हुई थी। बंगले के बीचोंबीच एक मोढ़े पर मोमी शमादान जल रहा था। एक तरफ चबूतरे पर ऊदी चिनियांपोत की बनारसी साड़ी पहने एक हसीन औरत बैठी हुई थी जिसकी अवस्था अट्ठारह वर्ष से ज्यादे की न होगी। उसकी खूबसूरती और नज़ाकत की जहां तक तारीफ की जाय थोड़ी है। मगर इस समय उसकी बड़ी-बड़ी रसीली आंखों से गिरे हुए मोती-सरीखे आंसू की बूँदें उसके गुलाबी गालों को तर कर रही थीं। उसकी दोनों नाजुक कलाइयों में स्याह चूड़ियां, छन्द और जड़ाऊ कड़े पड़े हुए थे, बाएँ हाथ से कमरबन्द और दाहिने हाथ से उस हसीन नौजवान की कलाई पकड़े सिसक-सिसक कर रो रही है जो उसके सामने खड़ा हसरत-भरी निगाहों से उसके चेहरे की तरफ देख रहा था और जिसके अन्दाज से मालूम होता था कि वह कहीं जाया चाहता है, मगर लाचार है, किसी तरह उन नाजुक हाथों से अपना पल्ला छुड़ा कर भाग नहीं सकता। उस नौजवान की अवस्था पच्चीस वर्ष से ज्यादे की न होगी, खूबसूरती के अतिरिक्त उसके चेहरे से बहादुरी और दिलावरी भी जाहिर हो रही थी। उसके मजबूत और गठीले बदन पर चुस्त बेशकीमत पोशाक बहुत ही भली मालूम होती थी।
औरत : नहीं, मैं जाने न दूँगी।
मर्द : प्यारी! देखो, तुम मुझे मत रोको, नहीं तो लोग ताना मारेंगे और कहेंगे कि बीरसिंह डर गया और एक ज़ालिम डाकू की गिरफ्तारी के लिए जाने से जी चुरा गया। महाराज की आंखों से भी मैं गिर जाऊँगा और मेरी नेकनामी में धब्बा लग जाएगा।
औरत : वह तो ठीक है, मगर क्या लोग यह न कहेंगे कि तारा ने अपने पति को जान-बूझ कर मौत के हवाले कर दिया?
बीर॰ : अफसोस! तुम वीर-पत्नी होकर ऐसा कहती हो?
तारा : नहीं, नहीं, मैं यह नहीं चाहती कि आपके वीरत्व में धब्बा लगे, बल्कि आपकी बहादुरी की तारीफ लोगों के मुँह से सुन कर मैं प्रसन्न होना चाहती हूं, मगर अफसोस! आप उन बातों को फिर भी भूल जाते हैं जिनका जिक्र मैं