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पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/३१

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तरफ चल निकले । ये लोग भूखे-प्यासे पहर-भर दिन बाकी रहे तक बराबर घोड़ा फेंके चले गए । इसके बाद एक घने जंगल में पहुँचे और थोड़ी दूर तक उसमें जाकर एक पुराने खण्डहर के पास पहुँचे । नाहरसिंह ने घोड़े से उतर कर बीरसिंह को भी उतरने के लिए कहा और बताया कि यही हमारा घर है ।

यह मकान जो इस समय खण्डहर मालूम होता है, पाँच-छ: बिगहे के घेरे में होगा । खराव और बर्बाद हो जाने पर को अभी तक इसमें सौ-सवा सौ आदमियों के रहने की जगह थी । इनकी मजबूत, चौड़ी और संगीन दीवारों से मालूम होता था कि इसे किसी राजा ने बनवाया होगा और बेशक यह किसी समय में दुलहिन की तरह सजा कर काम में लाया जाता होगा । इसके चारों तरफ की मजबूत दीवारें अभी तक मजबूती के साथ खड़ी थीं, हाँ भीतर की इमारत खराब हो गई थी, तो भी कई कोठरियाँ और दालान दुरुस्त थे जिनमें इस समय नाहरसिंह और उसके साथी लोग रहा करते थे । बीरसिंह ने यहाँ लगभग पचास बहादुरों को देखा जो हर तरह से मजबूत और लड़ाके मालूम होते थे ।

बीरसिंह को साथ लिए हुए नाहरसिंह उस खण्डहर में घुस गया और अपने खास कमरे में जाकर उन्हें पहर-भर तक आराम करके सफर की हरारत मिटाने के लिए कहा ।



 

दूसरे दिन शाम को खण्डहर के सामने घास की सब्जी पर बैठे हुए बीरसिंह और नाहरसिंह आपुस में बातें कर रहे हैं । सूर्य अस्त हो चुका है सिर्फ उसकी लालिमा आसमान पर फैली हुई है । हवा के झोंके बादल के छोटे-छोटे टुकड़ों को आसमान पर उड़ाये लिए जा रहे हैं । ठंडी-ठंडी हवा जंगली पत्तों को खड़खड़ाती हुई इन दोनों तक आती और हर खण्ड की दीवार से टक्कर खाकर लौट जाती है । ऊँचे-ऊँचे सलई के पेड़ों पर बैठे हुए मोर आवाज लड़ा रहे हैं और कभी-कभी पपीहे की आवाज भी इन दोनों के कानों तक पहुँच कर समय की खूबी और मौसिम के बहार का सन्देसा दे रही है । मगर ये चीजें बीरसिंह और नाहरसिंह को खुश नहीं कर सकतीं । वे दोनों अपनी धुन में न-मालूम कहाँ पहुँचे हुए और क्या सोच रहे हैं ।