मरवा डाला तो और भी ताज्जुब करोगे और कहोगे कि वह हरामजादा तो कुत्तों से नुचवाने लायक है ।
बीर० : मेरे बाप को करनसिंह ने मरवा डाला !!
नाहर: : हाँ ।
बीर० : वह क्योंकर और किस लिये ?
नाहर० : यह किस्सा बहुत बड़ा है, इस समय मैं कह नहीं सकता, देखो, सवेरा हो गया और पूरब तरफ सूर्य की लालिमा निकली आती है । इस समय हम लोगों का यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं है। मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम मुझे अपना सच्चा दोस्त या भाई समझोगे और मेरे घर चल कर दो-तीन दिन आराम करोगे । इस बीच में जितने छिपे हुए भेद हैं, सब तुम्हें मालूम हो जाएँगे ।
बीर० : बेशक, अब मैं आपका भरोसा रखता हूँ क्योंकि आपने मेरी जान बचाई और बेईमान राजा की बदमाशी से मुझे सचेत किया । अफसोस इतना ही है कि तारा का हाल मुझे कुछ भी मालम न हुआ ।
नाहर० : मैं वादा करता हूँ कि तुम्हें बहुत जल्द तारा से मिलाऊँगा और तुम्हारी उस बहिन से भी तुम्हें मिलाऊँगा जिसके बदन में सिवाय हड्डी के और कुछ नहीं बच गया है ।
बीर० : (ताज्जुब से) क्या मेरी कोई बहिन भी है ?
नाहर० : हाँ है, मगर अब ज्यादा बातचीत करने का मौका नहीं है । उठो और मेरे साथ चलो, देखो ईश्वर क्या करता है ।
बीर० : करनसिंह ने वह चिट्ठी जिसके पास भेजी थी, उसे क्या आप जानते हैं ?
नाहर० : हाँ, मैं जानता हूँ, वह भी बड़ा ही हरामजादा और पाजी आदमी है पर जो भी हो, मेरे हाथ से वह भी नहीं बच सकता ।
दोनों आदमी वहाँ से रवाने हुए और लगभग आध कोस जाने के बाद एक पीपल के पेड़ के नीचे पहुँचे जहाँ दो साईस दो कसे-कसाये घोड़े लिए मौजूद थे । नाहरसिंह ने बीरसिंह से कहा, "अपने साथ तुम्हारी सवारी का भी बन्दोबस्त करके मैं तुम्हें छुड़ाने के लिए गया था, लो इस घोड़े पर सवार हो जाओ और मेरे साथ चलो ।"
दो आदमी घोड़ों पर सवार हुए और तेजी के साथ नेपाल की तराई की