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पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/४६

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दू॰ आ॰: बीरसिंह से मिलकर तुम क्या करते?

बाबू सा॰: उसे होशियार कर देता कि राजा तुम्हारा दुश्मन है और कुछ हाल उसकी बहिन सुन्दरी का भी बताता जिसका उसे ख्याल भी नहीं है और यह भी कह देता कि तुम्हारी स्त्री तारा बच गई मगर अभी तक मौत उसके सामने नाच रही है। (नाहरसिंह की तरफ देख कर) आपकी कृपा होगी तो मैं बीरसिंह से मिल सकूँगा क्योंकि आज ही आपने उन्हें कैद से छुड़ाया है।

नाहर॰: अहा, अब मैं समझ गया कि आपका नाम बाबू साहब है, नाम तो कुछ दूसरा ही है मगर दो-चार आदमी आपको बाबू साहब के नाम से ही पुकारते हैं, क्यों है न ठीक?

बाबू साहब: हाँ है तो ऐसा ही!

नाहर॰: मैं आपका पूरा पूरा हाल नहीं जानता, हाँ जानने का उद्योग कर रहा हूँ, अच्छा अब हमको भी साफ-साफ कह देना मुनासिब है कि मेरा नाम नाहरसिंह नहीं है, हम दोनों उनके नौकर हैं, हाँ यह सही है कि वे आज बीरसिंह को छुड़ा के अपने घर ले गए हैं जहाँ आप चाहें तो नाहरसिंह और बीरसिंह से मिल सकते हैं।

बाबू साहब: मैं जरूर उनसे मिलूंगा।

प॰ आ॰: और यह आपके साथ लड़का लिए कौन है?

बाबू साहब: इसका हाल तुम्हें नाहरसिंह के सामने ही मालूम हो जायेगा।

प॰ आ॰: तो क्या आप अभी वहां चलने के लिए तैयार हैं?

बाबू साहब: बेशक!

प॰ आ॰: अच्छा तो आप इस गट्ठर को मेरे हवाले कीजिए, मैं इसे इसी जगह खपा डालता हूँ केवल इसका सिर मालिक के पास ले चलूँगा, इस लड़के को गोद में लीजिए और इस लौंडी को बिदा कीजिए, चलिए सवारी भी तैयार है।

बाबू साहब ने उस लौंडी को बिदा कर दिया। एक आदमी ने उस गट्ठर को पीठ पर लादा, बाबू साहब ने लड़के को गोद में लिया और उन दोनों के पीछे रवाने हुए मगर थोड़ी ही दूर गए थे कि पीछे से तेजी के साथ दौड़ते हुए आने वाले घोड़े के टापों की आवाज इन तीनों के कानों में पड़ी। बाबू साहब ने चौंक कर कहा, "ताज्जुब नहीं कि हम लोगों को गिरफ्तार करने के लिए सवार आते हों!"