पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/५७

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साधु ने अपनी झोंपड़ी के कोने में से बड़े-बड़े दो आम निकाले और तारा के हाथ में देकर कहा, "पहिले तू इन्हें खा, फिर बात-चीत होगी।" तारा का जी बहुत ही बेचैन था, तरह-तरह के खयालों ने उसे अपने आपे से बाहर कर दिया था, और इस विचार ने कि उसके पति बीरसिंह पर जरूर कोई आफत आई होगी, उसे अधमूआ कर दिया था। वह सोच रही थी कि अगर मैं अपने बाप के हाथ से मार डाली गई होती तो अच्छा था क्योंकि इन सब बखेड़ों से और अपने पति के बारे में बुरी खबरों के सुनने से तो बचती। तारा ने आम खाने से इन्कार किया मगर साधु महाशय के बहुत जिद्द करने और समझाने से लाचार हुई और आम खाना ही पड़ा। हाथ धोने के लिए जब वह कुटी के बाहर निकली तब उसे मालूम हुआ कि यह कुटी एक नदी के किनारे पर बनी हुई है और चारों तरफ जहाँ तक निगाह काम करती है मैदान और सन्नाटा ही दिखाई पड़ता है। समय दोपहर का था बल्कि धूप कुछ ढल चुकी थी जब तारा हाथ-मुँह धोकर बैठी और यों बातचीत होने लगी:

साधु: हाँ तारा, अब मैं उम्मीद करता हूं कि तू अपना सच्चा-सच्चा हाल मुझसे कहेगी।

तारा: बेशक, मैं आपसे जो कुछ कहूँगी, सच कहूँगी क्योंकि मुझे आपसे अपनी भलाई की बहुत-कुछ उम्मीद होती है।

साधु: मेरे सामने अग्नि जल रही है, मैं इसे साक्षी देकर कहता हूँ कि तू मुझसे सिवाय भलाई के बुराई की उम्मीद जरा भी मत रख। हाँ, अब कह, तू कौन है और तुझ पर क्या आफत आई है?

तारा: मैं राजा करनसिंह के खजानची सुजनसिंह की लड़की हूँ।

साधु: वही लड़की जिसकी शादी बीरसिंह के साथ हुई है?

तारा: जी हाँ।

साधु: तेरा बाप है तो क्या हुआ मगर मैं यह कहने से बाज न आऊँगा कि सुजनसिंह बड़ा ही बेईमान नमकहराम और खुदगर्ज आदमी है। साथ ही इससे बीरसिंह की वीरता, लायकी और रिआया-पर्वरी मुझसे अपनी तारीफ कराये बिना नहीं रहती। बीरसिंह बड़ा ही धर्मात्मा और साहसी है। हाँ तारा, जब तू सुजनसिंह की लड़की है तो जरूर राजा के यहाँ भी आती-जाती होगी?

तारा: जी हाँ, पहिले तो मैं महीनों राजा ही के यहाँ रहा करती थी मगर