पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/६३

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उस दवानखाने में न तो सुन्दरी थी और न वह लटकती हुई लड़की ही। उसके बदले दूसरे दो आदमियों की लाश पड़ी हुई थी। राजा और उसके साथी जो-जो बातें करते थे साफ सुनाई देती थीं। राजा ने मेरे बाप की तरफ देख कर कहा, "ये दोनों हरामजादी लौंडियाँ छत पर चढ़ कर मेरी कारवाई देख रही थीं! इन्हें अपनी जान का कुछ भी खौफ न था! (हरीसिंह की तरफ देख कर) हरी, इन दोनों की लाश ऐसी जगह पहुँचाओ कि हजारों वर्ष बीत जाने पर भी किसी को इनके हाल की खबर न हो। (मेरे बाप की तरफ देख कर) तैंने बहुत बुरा किया जो तारा को छोड़ दिया, बेशक, अब वह भाग गई होगी, लेकिन तेरी जान तभी बचेगी जब तारा का सर मेरे सामने लाकर हाजिर करेगा, वह भी ऐसे ढब से कि किसी को कानों कान खबर न हो कि तारा कहाँ गई और क्या हुई। बेशक, तारा यह हाल बीरसिंह से भी कहेगी, मुझे लाजिम है कि जहाँ तक जल्द हो सके बीरसिंह को भी इस दुनिया से उठा दूँ!" यह सुनते ही मेरा कलेजा काँप उठा और यह सोचती हुई कि मैं अभी जाकर अपने पति को इस हाल की खबर करूँगी जिसमें वे अपनी जान बचा सकें, वहाँ से भागी और महल से एक लौंडी को साथ ले तुरन्त अपने घर चली आई।

साधु महाशय तारा के मुँह से इस किस्से को सुन कर काँप गए और देर तक गौर में पड़े रहने के बाद बोले, "यह राजा बड़ा ही दुष्ट और दगाबाज है, लेकिन ईश्वर चाहेगा तो बहुत जल्द अपने कर्मों का फल भोगेगा!!"



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हम ऊपर लिख आये हैं कि जमींदारों और सरदारों की कमेटी में से अपने तीनों साथियों और नाहरसिंह को साथ ले वीरसिंह की खोज में खड़गसिंह बाहर निकले और थोड़ी दूर जाकर उन्होंने जमीन पर पड़ी हुई एक लाश देखी। लालटेन की रोशनी में चेहरा देख कर उन लोगों ने पहिचाना कि यह राजा का आदमी है।

नाहर॰: मालूम होता है, इस जगह राजा के आदमियों और बीरसिंह से लड़ाई हुई है।

खड़ग॰: जरूर ऐसा हुआ है, ताज्जुब नहीं कि बीरसिंह को गिरफ्तार करके राजा के आदमी ले गए हों।