लड़की को मार ?
सुजन० : एक अभागा तो मैं ही हूं तारा ! लेकिन अब तू कुछ मत बोल । तेरी प्यारी बातें सुन कर मेरा कलेजा काँपता है, रुलाई गला दबाती है, हाथ से कटार छूटा जाता है । बेटी तारा ! बस तू चुप रह, मैं लाचार हूँ !!
तारा : क्या किसी तरह मेरी जान नहीं बच सकती ?
सुजन० : हाँ, बच सकती है अगर तू 'हरी' वाली बात मंजूर करे ।
तारा : ओफ, ऐसी बुरी बात का मान लेना तो बहुत मुश्किल है ! खैर, अगर मैं वह भी मंजूर कर लूँ तो ?
सुजन० : तो तू बच सकती है मगर मैं नहीं चाहता कि तू उस बात को मंजूर करे ।
तारा : बेशक, मैं कभी नहीं मंजूर कर सकती, यह तो केवल इतना जानने के लिए बोल बैठी कि देखूँ तुम्हारी क्या राय है ?
सुजन० : नहीं, मैं उसे किसी तरह मंजूर नहीं कर सकता बल्कि तेरा मरना मुनासिब समझता हूं । लेकिन हाय अफसोस ! आज मैं कैसा अनर्थ कर रहा हूं !!
तारा : पिता, बेशक मेरी जिन्दगी तुम्हारे हाथ में है । क्या और नहीं तो केवल एक दफे किसी के चरणों का दर्शन कर लेने के लिए तुम मुझे छोड़ सकते हो ?
सुजन० : यह भी तेरी भूल है, जिससे तू मिला चाहती है वह भी घण्टे-भर के अन्दर ही इस दुनिया से कूच कर जाएगा, अब शायद दूसरी दुनिया में ही तेरी और उसकी मुलाकात हो !!
तारा : हाय ! अगर ऐसा है तो मैं पति के पहिले ही मरने के लिए तैयार हूं, बस अब देर मत करो । हैं ! पिता ! तुम रोते क्यों हो ? अपने को सम्हालो और मेरे मारने में अब देर मत करो !!
सुजन० : (आंसू पोंछ कर) हां हां, ऐसा ही होगा, ले अब सम्हल जा !!
बीरसिंह तारा से बिदा होकर बाग के बाहर निकला और सड़क पर पहुंचा । इस सड़क के किनारे बड़े-बड़े नीम के पेड़ थे जिनकी डालियों के, ऊपर जाकर आपस में मिले रहने के कारण, सड़क पर पूरा अंधेरा था । एक तो अंधेरी रात,दूसरे