पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/१०६

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संकेतानुसार

उस दिन शामतक कपालकुण्डला केवल यही चिन्ता करती रही कि ब्राह्मणवेशीके साथ मुलाकात करना चाहिए या नहीं। एक पतिव्रता युवतीके लिये निर्जन रातमें परपुरुष सम्भाषण बुरा और निन्दनीय है, केवल यही विचार कर वह मिलनेमें हिचकती थी, कारण, उसका सिद्धान्त था कि असद्उद्देश्यसे न मिलनेसे कोई हानि नहीं है। स्त्रीको स्त्रीसे या पुरुषको पुरुषसे मिलनेका, जैसा अधिकार मुझे है, वैसा ही अधिकार निर्मल चित्त रखनेपर उसे भी प्राप्त है। सन्देह केवल यह है कि ब्राह्मणवेशी पुरुष है या स्त्री। उसे संकोच था तो केवल इसलिए कि मुलाकात मंगलजनक है अथवा नहीं। पहले ब्राह्मणवेशीसे मुलाकात, फिर कापालिक द्वारा पीछा और दर्शन और अन्तमें स्वप्न, इन सब घटनाओंने कपालकुण्डलाको बहुत डरा दिया था। उसका अमङ्गल निकट है उसे ऐसा जान पड़ने लगा और उसे यह भी सन्देह न रहा कि यह अमङ्गल कापालिकके आगमनके कारण है। यह तो स्पष्ट ही उसने कहा कि बातें कपालकुण्डलाके बारेमें ही हो रही थीं। हो सकता है, उसके द्वारा कोई बचावकी भी राह निकल आये। लेकिन बातोंसे तो यही जान पड़ता है कि या तो मृत्यु अथवा निर्वासन दण्ड। तो क्या ये सारी बातें मेरे ही लिए हैं? ब्राह्मणवेशीने तो कहा था कि उसके बारेमें ही बात है। ऐसी कुमंत्रणामें ब्राह्मणवेशी जब सहकारी है, तो उससे मिलना मंगलजनक नहीं, बल्कि आफत स्वयं बुलाना होगा। लेकिन रातमें जो स्वप्न देखा उसमें तो ब्राह्मणवेशीके कथनसे जान पड़ा कि वह रक्षा भी कर सकता है।