तो क्या होगा? क्या वह स्वप्नकी तरह डुबायेगा? हो सकता है, माताजीने उसे इसीलिए भेजा हो कि उससे मेरी रक्षा ही हो। अतएव कपालकुण्डलाने मुलाकात करनेका ही निश्चय किया। बुद्धिमान ऐसा सिद्धान्त करता या नहीं, सन्देह है, लेकिन यहाँ बुद्धिमानीसे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है। कपालकुण्डला कच्ची उम्र की थी, अतः उसने बुद्धिमानीका विचार नहीं किया। उसने कुतूहली रमणी जैसा सिद्धान्त किया; भीमकान्त रूपराशि दर्शन लोलुप जैसा कार्य किया; नैशवनविहारिणी संन्यासीपालिताकी तरह सिद्धान्त किया और सिद्धान्त किया दीपक शिखापर पतित होनेवाले पतंगेकी तरह।
सन्ध्याके बाद बहुत-कुछ गृह-कार्य समाप्त कर कपालकुण्डलाने पहलेकी तरह वनयात्रा की। यात्राके समय कपालकुण्डलाने अपने कमरेका दीपक तेज कर दिया। लेकिन वह जैसे ही घरके बाहर हुई दीपक बुझ गया।
यात्राके समय कपालकुण्डला एक बात भूल गयी। ब्राह्मणवेशधारीने किस जगह मुलाकातके लिए लिखा है? अतः पत्र पढ़नेकी फिर आवश्यकता हुई। उसने लौटकर पत्र रखा हुआ स्थान ढूँढा, लेकिन वहाँ पत्र न मिला। याद आया कि उसने पत्रको अपने जूड़ेमें खोंस लिया था। अतः जूड़ेमें देखा, वेणी खोलकर देखा, लेकिन पत्र न मिला। घरके अन्य स्थानोंको खोजा। अतएव पूर्व स्थानपर मिलनेके ख्यालसे निकल पड़ी। जल्दीमें उसने फिर अपने खुले बाल बाँधे नहीं। अतः आज कपालकुण्डला प्रथम अनूढ़ाकी तरह उन्मुक्तकेश होकर चली।
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