पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/१०८

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दरवाजेपर[१]

“Stand you a while apart
Confine yourself, but in a patient list.
—Othello

सन्ध्यासे पहले जब कपालकुण्डला गृहकार्यमें लगी हुई थी, उसी समय वह पत्र जूड़ेसे खसककर गिर पड़ा था। कपालकुण्डलाको पता न रहा। उसे नवकुमारने देख लिया। जूड़ेसे पत्र गिरते देख उन्हें आश्चर्य हुआ। कपालकुण्डलाके वहाँसे हट जानेपर उन्होंने पत्रको पढ़ा, उसके पढ़नेसे एक ही सिद्धान्त सम्भव है। “जो बात कल सुनना चाहती थी, वह आज सुनेंगी?” वह कौनसी बात है? क्या प्रणय वाक्य? क्या ब्राह्मणवेशधारी मृण्मयीका उपपति है? जो व्यक्ति पहली रातकी घटनासे अवगत नहीं है, वह केवल यही सोच सकता है।

स्वामीके साथ सती होनेके समय अन्य किसी कारणसे जब कोई जीता हुआ चितारोहण करता है और चितामें आग लगा दी जाती है तो पहले धुएँसे उसके चारों ओरका स्थान घिर जाता है, फिर क्रमशः लकड़ियोंके बीचसे एक-दो अग्निशिखा सर्प जिह्वाकी तरह उसके अंगपर आकर आक्रमण करती हैं, फिर अन्तमें ज्वालमाला चारों तरफसे घेर लेती है और शिरपर्यन्त अग्नि पहुँच कर उसे दग्ध कर राख बना देती है।

पत्र पढ़नेपर नवकुमारका भी यही हाल हुआ। पहले समझे नहीं, फिर संशय, निश्चयता, अन्तमें ज्वाला। मनुष्यका हृदय एकबारगी दुःख या सुख बर्दाश्त कर नहीं सकता; क्रमशः ग्रहण

  1. इधर एक अध्यायको छोड़ दिया गया है।