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पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/११३

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कपालकुण्डला
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बलिदान करो। इससे भगवतीका उसने जो अपकार किया है, उसका दण्ड होगा, पवित्र कर्मसे अक्षय पुण्य होगा; विश्वासघातिनीका दण्ड होगा, चरम प्रतिशोध होगा।”

कापालिक चुप हुआ। नवकुमार कुछ भी न बोले। कापालिक ने उन्हें चुप देखकर कहा—“अब चलो, वत्स! जो दिखानेको कह चुका हूँ, दिखाऊँगा|”

नवकुमार पसीनेसे तर कापालिकके साथ चले।

 

:७:

सपत्नी संभाषण

“Be at peace: it is your sister that addresses you, Require Lucretia’s love.

—Lucretia.

कपालकुंडला घरसे निकलकर जंगलमें घुसी। वह पहले उस टूटे घरमें पहुँची। वहाँ ब्राह्मणसे मुलाकात हुई। दिनका समय होता तो वह देखती कि उसका चेहरा बहुत उतर गया है। ब्राह्मणवेशीने कपालकुंडलासे कहा—“यहाँ कापालिक आ सकता है, आओ अन्यत्र चलें।” जंगलमें एक खुली जगह थी, चारों तरफ वृक्ष, बीचमें चौरस, साफ और समतल था। वहाँ बैठनेपर ब्राह्मणवेशीने कहा—“पहले मैं अपना परिचय दूँ। मेरी बात कहाँ तक विश्वासयोग्य है, स्वयं समझ सकोगी। जब तुम अपने स्वामोके साथ हिजली देश से आ रही थी, तो राहमें एक यवन कन्याके साथ मुलाकात हुई थी। क्या तुम्हें याद है?”

कपालकुंडला बोली—“जिसने मुझे अलंकार दिये थे?”