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पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/२१

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कपालकुण्डला
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भी, इस पथहीन जङ्गलसे निकल ही कैसे सकते हैं? कापालिक अवश्य ही राह जानता है। क्या पूछनेसे बता न देगा? विशेषतः अभी जहाँ तक देखा गया है, कापालिकने उनके प्रति कोई शंकासूचक आचरण नहीं किया है। फिर, वह इतना क्यों डरते हैं? इधर कापालिकने मना किया है, कि जबतक फिर हमसे मुलाकात न हो, इस कुटीसे कहीं न जाना। हो सकता है उसकी आज्ञा न माननेसे उसके क्रोधका भाजन बनना पड़े। नवकुमार ने सुन रखा है कि कापालिक असाध्य कार्य कर सकते हैं। अतः ऐसे पुरुषकी अवज्ञा करना अनुचित है। इस तरह सोच-विचार कर अन्तमें कापालिककी कुटीमें ही रहनेका निश्चय किया।

लेकिन धीरे-धीरे तीसरा प्रहर आ गया। फिर भी, कापालिक न लौटा। एक दिन पहलेका उपवास और इस समय तकका अनशन नवकुमारकी भूख फिर प्रबल हो उठी। कुटीमें जो कुछ फलमूल था, वह पहले ही समाप्त हो चुका था। अब बिना आहाराथे फलमूल खोजे काम नहीं चल सकता। बिना फलकी खोज किये काम नहीं चलता, कारण भूख भयानक रूपसे उभड़ चली थी। शामके होनेमें जब थोड़ा समय रह गया, तो अन्तमें फलकी खोजमें नवकुमारको बाहर निकलना ही पड़ा।

नवकुमारने फलकी खोजमें समीपके सारे स्तूपोंका परिभ्रमण किया। जो एक-दो वृक्ष इस बालू पर उगे थे, उनसे एक तरहके बादामके जैसा फल मिला। खानेमें वह फल बहुत ही मीठा था, अतः नवकुमार ने भरपेट उसे ही खाया।

उस भागमें रचित बालुका स्तूप थोड़ी ही तादादमें थे, अतः थोड़ी देरके परिश्रमसे ही नवकुमार उसे पार कर गये। इसके बाद ही वह बालुकाहीन निविड़ जंगलमें जा पड़े। जिन लोगोंने