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पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/४१

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कपालकुण्डला
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कन्याको पुत्री कह चुकी हूँ; मैं भी एक अज्ञात युवकके साथ परदेश कैसे जाने दे सकती हूँ?”

बीचकी दलाल, दलालीमें कम नहीं हैं।

नवकुमार ने कहा—“आप भी साथ चलिए।”

अधि०—“मैं साथ जाऊँगी तो भवानीकी पूजा कौन करेगा?”

नवकुमारने क्षुब्ध होकर कहा—“तो क्या आप कोई उपाय कर नहीं सकतीं?”

अधि०—“उपाय केवल एक है, लेकिन वह भी आप की उदारता पर निर्भर करता है।”

नव०—“वह क्या है? में किस बातमें अस्वीकृत हूँ? क्या उपाय है, बताइये?”

अधि०—“सुनिये। यह ब्राह्मण कन्या है। इसका हाल में अच्छी तरह जानती हूं। यह कन्या बाल्यकालमें ख्रष्टानोंद्वारा अपहृत होकर ले जायी जा रही थी, और जहाज टूट जानेके कारण इसी समुद्रतटपर छोड़ दी गयी। वह सब हाल बादमें आपको उस कन्यासे ही मालूम हो जायगा। इसके बाद कापालिकने इसे अपनी सिद्धिका उपकरण बनाकर इसका प्रतिपालन किया। शीघ्र ही वह अपना प्रयोजन सिद्ध करता। यह अभी तक अविवाहित है और साथ ही चरित्रमें पवित्र है। आप इसके साथ शादी कर लें। कोई कुछ भी इस प्रकार कह न सकेगा। मैं यथाशास्त्र विवाह कार्य पूरा करा दूँगी।”

नवकुमार शय्यासे उठ खड़े हुए। वह तेजीसे उस कमरे में इधर-उधर घूमने लगे। उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। पुजारिनने थोड़ी देर बाद फिर कहा—“आप इस समय सोयें। मैं कल बड़े तड़के जगा दूँगी। यदि इच्छा होगी, अकेले चले जाइयेगा। में आपको मेदिनीपुरकी राहपर छोड़ आऊँगी।”