पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/४५

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द्वितीय खण्ड

:१:

शाही राहपर

“—There–now lean on me,
Place your foot here.
—Manfred.

किसी लेखकने कहा है—“मनुष्यका जीवन काव्य विशेष है।” कपालकुण्डलाके जीवनकाव्यका एक सर्ग समाप्त हुआ। इसके बाद?

नवकुमारने मेदिनीपुर पहुँचकर अधिकारी प्रदत्त धनके बलसे कपालकुण्डलाके लिए एक दासी, एक रक्षक और शिविका-वाहक नियुक्त कर, उसे शिविकापर चढ़ाकर आगे भेजा। पैसे अधिक न होनेके कारण वह स्वयं पैदल चले। नवकुमार एक दिन पहलेके परिश्रमसे थके हुए थे। दोपहरके भोजनके बाद पालकी ढोनेवाले कहार उन्हें पीछे छोड़ बहुत आगे निकल गये। क्रमशः सन्ध्या हुई, शीतकालके विरल बादलोंसे आकाश भरा हुआ था। सन्ध्या भी बीती। पृथ्वीने अन्धकार वस्त्रसे अपनेको ढंक लिया। कुछ बूँदा-बाँदी भी होने लगी। नवकुमार कपालकुण्डलाके साथ एकत्र