पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/४८

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द्वितीय खण्ड
 

स्त्रीने भी मूर्खका कार्य न किया। नवकुमारके कन्धेका सहारा लेकर वह चली।

सचमुच चट्टी करीब ही थी। उन दिनोंमें चट्टीके करीब भी ऐसे दुष्काण्ड हुआ करते थे। इसमें डाकू कोई संकोच करते न थे। थोड़ी ही देर बाद नवकुमार उस स्त्रीको साथ लेकर चट्टीमें जा पहुँचे।

नवकुमारने देखा कि इसी चट्टीमें कपालकुण्डला भी पहुँच गयी है। उनकी दासियोंने उनके लिये एक कमरा ले रखा था। नवकुमारने अपने साथ आई उस रमणीके लिये अपने बगलकी-कोठरी ठीक कर उसे उसमें बैठाया। आज्ञानुसार घरकी मालकिन एक प्रदीप उस कमरेमें रख गयी। प्रदीप-प्रकाशमें अब नवकुमारने देखा कि वह रमणी असाधारण सुन्दरी है। रूपराशितरंगमें उसके यौवनकी शोभा श्रावण मास की भरी हुई नदीकी तरह उछली पड़ती है।

 


:२:

सरायमें

कैषा योषित प्रकृतिचपला।”
—उद्घवदूत।

यदि रमणी निर्दोष सौन्दर्यविशिष्टा होती, तो कहता, पुरुष पाठक! यह आपकी गृहिणी जैसी सुन्दरी है। और सुन्दरी पाठिका रानी! यह आपकी शीशेमें पड़नेवाली प्रति छाया जैसी