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द्वितीय खण्ड
 

थोड़ी देर बाद बिना मुँह उठाये ही बोली—‘दासी का नाम मोती है। महाशयका नाम क्या है, सुन सकती हूँ?’

नवकुमारने कहा—“नवकुमार शर्मा।”

प्रदीप बुझ गया।

 


:३:

सुन्दरी-संदर्शन

“धरो देवि मोहन मूरति
देह आज्ञा, सजाई वरवधु आनि
नामा आभरण।”
—मेघनाद वध

[१]

नचकुमारने गृहस्वामिनीको बुलाकर दूसरा दीपक लाने के लिए कहा। दूसरा दीपक लाये जानेके पहले नवकुमारने उस सुन्दरीको एक दीर्घ निश्वास लेते सुना। दीपक लाये जाने के थोड़ी देर बाद ही वहाँ एक नौकर वेशमें मुसलमान उपस्थित हुआ। विदेशिनीने उसे देखकर कहा—“यह क्या, तुम लोगोंको इतनी देर क्यों हुई? और सब कहाँ हैं?”

नौकरने कहा—“पालकी ढोनेवाले सब मतवाले हो रहे थे। उन सबको बटोरकर ले आनेमें हमलोग पालकीसे बहुत ही पीछे छूट गये। इसके बाद टूटी पालकी और आपको न देखकर हमलोग पागलसे हो गये। अभी कितने ही उसी जगह हैं। कितने दूसरी तरफ आपकी खोजमें गये हैं। मैं खोजनेके लिए इधर आया।”

मोतीने कहा—“उन सबको ले आओ।”

  1. अनुवादक की भ्रान्ति। मूलमें है:

    “धरो देवि मोहन मूरति।
    देह आज्ञा, सजाई ओ वरवपु आनि
    नाना आभरण!”
    मेघनादवध