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कपालकुण्डला
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नौकर सलाम कर चला गया। विदेशिनी कुछ समय तक ठुड्ढीपर हाथ रखे बैठी रही।

नवकुमारने विदा होना चाहा। इसके बाद मोती बीबीने स्वप्नोत्थिताकी तरह एकाएक खड़ी होकर पूछा—“आप कहाँ रहेंगे?”

नव०—यहीं बगलके कमरेमें।

मोती०—आपके कमरेके सामने एक पालकी रखी थी। क्या आपके साथ कोई है?”

“मेरी स्त्री मेरे पास है।”

मोती बीबीने फिर व्यङ्गका अवकाश पाया। बोली—“क्या वही अद्वितीय रूपवती है?”

नव०—देखनेसे स्वयं समझ सकेंगी।

मोती०—क्या मुलाकात हो सकेगी?

नव०—(विचारकर) हर्ज क्या है?

मोती०—तो कृपा कीजिए न! अद्वितीय रूपवतीको देखनेकी बड़ी इच्छा होरही है। आगरे जाकर मैं कहना चाहती हूँ। लेकिन अभी नहीं—अभी आप जायँ। थोड़ी देर बाद मैं खबर दूँगी।

नवकुमार चले गये। थोड़ी देर बाद बहुतेरे आदमी, दासदासी और वाहक सन्दूक आदि लेकर उपस्थित हुए। एक पालकी भी आयी। उसमें एक दासी थी। इसके बाद नवकुमारके पास खबर आई—“बीबी आपको याद करती हैं।”

नवकुमार मोती बीबीके पास फिर वापस आए। देखा, इस बार दूसरा ही रूपान्तर है। मोती बीबीने पूर्व पोशाक बदलकर स्वर्णमुक्तादि शोभित कासकार्ययुक्त वेश-भूषा की है। सूनी देह अलंकारोंसे सज गयी है। जिस जगह जो पहना जाता है—कानोंमें, कबरीमें, कपालमें, आँखोंकी बगलमें, कण्ठमें, हृदयपर बाहू आदि सब जगह सोनेके आभूषणोंमें हीरकादि