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पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/५५

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कपालकुण्डला
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लगी। इस तरह अपने शरीर से गहने उतारकर वह एक-एक करके कपालकुण्डलाको पहनाने लगी। कपालकुण्डला कुछ न बोली। नवकुमार कहने लगे—“यह क्या करती हैं?” मोती बीबीने इसका कोई जवाब नहीं दिया।

अलंकार-सज्जा समाप्त कर और अच्छी तरह निरखकर मोती बीबीने कहा—“आपने सच कहा था। ऐसे फूल राजोद्यान में भी नहीं खिलते। दुःख यही है कि इस रूपराशिको राजधानीमें न दिखा सकी। यह गहने इसी शरीरके उपयुक्त हैं। इसीलिए मैंने पहना दिए हैं। आप भी इन्हें देखकर कभी-कभी मुखरा विदेशिनीको याद किया करेंगे।”

नवकुमारने चमत्कृत होकर कहा—“यह क्या? यह सब बहुमूल्य अलंकार हैं, मैं इन्हें क्यों लूँ?”

मोती ने कहा—“ईश्वर की कृपा से मेरे पास बहुत हैं। मैं निराभरण न हूँगी। इन्हें पहनाकर यदि सुखी होती हूँ, तो उसमें व्याघात क्यों उपस्थित करते हैं?”

यह कहती हुई मोती बीबी दासीके साथ वापस चली गई। अकेलेमें पहुँचनेपर पेशमनने मोती बीबीसे पूछा—“बीबी यह शख्स कौन है?”

यवनबालाने उत्तर दिया—“मेरा खसम।”