पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/५४

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द्वितीय खण्ड
 

रत्न झलक रहे थे। नवकुमारकी अाँखें नाच उठीं। अधिकांश स्त्रियाँ अधिक आभूषण पहन लेने पर श्री हीन हो जाती हैं—अनेक सजाई गयी पुतलीकी तरह दिखाई पड़ने लगती हैं। लेकिन मोती बीबीमें श्रीहीनता नहीं आयी थी। प्रभूत नक्षत्रमाला-भूषित आकाशकी तरह उसकी देहपर अलंकार शोभा दे रहे थे। शरीरकी माधुरी पर वह अलंकार मिलकर अद्भुत छटा दिखा रहे थे। शरीरका सौन्दर्य और बढ़ गया था। मोती बीबीने नवकुमारसे कहा—“महाशय! चलिए आपकी पत्नी के साथ परिचय प्राप्त कर आयें।” नवकुमार ने कहा—“इसके लिए अलंकार पहननेकी तो कोई जरूरत थी नहीं। मेरे परिवारमें तो गहना है नहीं।”

मोती बीबी—गहनोंको दिखाने के लिये ही पहन लिया है। आप नहीं जानते, स्त्रियों के पास गहने रहें और न दिखायें, यह हो नहीं सकता। यह स्त्री-प्रकृति है। खैर चलिये चलें।

नवकुमार मोती बीबी को साथ लेकर चले। जो दासी पालकी पर आयी थी, वह भी साथ चली। इसका नाम पेशमन् है।

कपालकुण्ला दुकान जैसे कमरेकी मिट्टीके फर्शपर बैठी थी। एक धीमी रोशनीका दीपक जल रहा था। आबद्ध निबिड़ केशराशि पीछेके हिस्सेमें अन्धकार किए हुई थी। मोती बीबीने पहले उन्हें जब देखा, तो होठके किनारेकी ओर आँखोंमें कुछ हँसीकी रेखा दिखाई दी। अच्छी तरह देखनेके लिए वह दीपक उठाकर कपाल कुण्डलाके चेहरेके पास ले आई।

लेकिन देखते ही फिर हँसी उड़नछू हो गयी। मोती बीबीका चेहरा गम्भीर हो गया। वह अनिमेष लोचन से सौन्दर्य देखती रह गयी। कोई कुछ न बोला। मोती मुग्ध थी—कपालकुण्डला कुछ विस्मित थी।

थोड़ी देर बाद मोती बीबी अपने शरीरसे गहने उतारने