पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/५८

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द्वितीय खण्ड
 

इस विषयमें कोई क्लेश उठाना न पड़ा। सभी लोग उनके वापस पहुँचनेमें हताश हो चुके थे। सहयात्रियोंने लौटकर बात उड़ा दी थी कि नवकुमारको शेरने मार डाला। पाठक सोच सकते हैं, इन सत्यवादियोंने आत्मविश्वासके बलपर ही यदि ऐसा कहा होगा, तो यह ठगकी कल्पनाशक्तिका अपमान करना होगा। लौटकर वापस आनेवाले कितने ही यात्रियोंने तो यहाँतक कह दिया था कि नवकुमारको व्याघ्र द्वारा आक्रान्त होते उन्होंने अपनी अाँखों देखा है। कभी-कभी तो उस शेरको लेकर आपसमें तर्क-वितर्क हुये। कोई कहता,—“वह आठ हाथ लम्बा रहा होगा।” दूसरेने कहा,—“नहीं-नहीं, वह पूरा चौदह हाथ लम्बा था।” इसपर पूर्व परिचित यात्रीने कहा था—“जो भी हो, मैं तो बाल-बाल बच गया था। बाघने पहले मेरा पीछा किया था, लेकिन मैं भाग गया, बड़ी चालाकीसे भागा, किन्तु क्या कहें, नवकुमार बेचारा भाग न सका। वह साहसी न था, यदि भागता तो शायद मेरी तरह वह भी बच जाता।”

जब यह सब गल्प नवकुमारकी माताके कानों में पहुँची तो घरमें वह क्रन्दनका कुहराम मचा, कि कई दिनोंतक शान्त न हुआ। एकमात्र पुत्रकी मृत्युकी खबरसे माता मृत प्राय हो गयी। ऐसे समय जब नवकुमार सस्त्री घर वापस लौटे, ता कौन पूछे कि वह किस जातिकी है और किसकी कन्या है? मारे प्रसन्नताके सब मत्त थे।

नवकुमारकी माताने बड़े आदर के साथ बहूको घर में बैठाया। जब नवकुमारने देखा कि घरवालोंने कपालकुण्डलाको सादर ग्रहण कर लिया, तो उनके हृदयमें अपार आनन्द प्राप्त हुआ। यद्यपि उनके हृदयमें कपालकुण्डला का निवास हो रहा था, फिर भी घरमें कहीं अनादर न हो, इस भयसे अबतक उन्होंने विशेष प्रणय लक्षण