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कपालकुण्डला
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प्रकट किये। इसके फलसे वह आगरेके उमरा लोगोंमें गिने जाने लगे। इधर लुत्फुन्निसा भी यौवनमें पदार्पण करने लगी। आगरेमें आकर इन्होंने फारसी, संस्कृत, नृत्यगीत, रसवादन आदिमें अच्छी शिक्षा ग्रहण कर ली। राजधानीकी सुन्दरियों और गुणवतियोंमें यह अग्रगण्य बनने लगीं। दुर्भाग्यवश लुत्फुन्निसाके पूर्ण युवती होनेपर जान पड़ा कि उसकी मनोवृत्ति दुर्दमनीय और भयानक है। इन्द्रियदमनकी न तो इच्छा थी और न क्षमता ही थी। सद् और असद् में समान प्रवृत्ति थी। यह कार्य अच्छा है और यह बुरा, ऐसा सोच कभी उसने कार्य नहीं किया। जो अच्छा लगता था, वही काम करती थी। जब सत् कर्मसे अन्तःकरण सुखी होता, तो वह करती और असत्‌कर्मके समय भी वही करती। यौवनकालकी दुर्दमनीय मनोवृत्तिके अनुकूल ही लुत्फुन्निसा भी बन गयी। उसके पूर्वपति वर्त्तमान हैं, उमरा लोगों में किसीने उसके साथ शादी न की। वह भी शादी की लालायित न रही। मन ही मन सोचा, फूल-फूलपर घूमनेवाली भ्रमरीको एक का बनाकर बाँध क्यों दूँ? पहले कानाफूसी हुई, इसके बाद मुँह पर कलंककी कालिमा लग गयी। उसके पिताने विरक्त होकर उसे घरसे निकाल दिया।

लुत्फुन्निसा गुप्त रूपसे जिन्हें कृपा-वितरण करती रही, उनमें युवराज सलीम भी एक थे। एक उमराके कुलके कलंकका कारण होनेपर पीछे बादशाहका कोपभाजन न बनना पड़े, इस कारण खुलकर सलीमशाहने लुत्फुन्निसाको अपने महलमें नहीं रखा। अब सुयोग मिल गया। राजपूतपति मानसिंहकी बहन सलीमकी प्रधान महिषी हुई। युवराजने लुत्फुन्निसाको अपनी महिषीकी प्रधान अनुचरी बना दिया। लुत्फुन्निसा बेगमकी सखी बन गयी और परोक्ष रूपसे युवराजकी अनुग्रह-भागिनी हुई।