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तृतीय खण्ड
 

लुत्फुन्निसा जैसी बुद्धिमती महिला शीघ्र ही युवराजके हृदय पर अधिकार कर लेगी, यह सहज अनुमेय है। सलीमके हृदयपर उसका अधिकार इस तरह प्रतियोगीशून्य हो गया कि लुत्फुन्निसा ने प्रण कर लिया कि वह इनकी पटरानी होकर रहेगी। केवल लुत्फुन्निसाकी ही ऐसी प्रतिज्ञा हुई, यह बात नहीं, बल्कि इसका विशवास महल भरमें हो गया। ऐसी ही आशामय स्वप्नमें लुत्फुन्निसाका जीवन पतिमें लगा। लेकिन इसी समय उसकी नींद टूटी। अकबर बादशाहके कोषाध्यक्ष ख्वाजा अब्बासकी कन्या मेहरुन्निसा यवनकुलकी प्रधान सुन्दरी निकली। एक दिन कोषाध्यक्ष ने युवराज सलीम और अन्य उमराको निमंत्रण देकर घर बुलाया। उसी दिन सलीमकी मुलाकात मेहरके साथ हो गयी। उसी दिन सलीमने भी अपना हृदय मेहरुन्निसा को सौंप दिया। इतिहासप्रेमीमात्र इस घटनाको जानते हैं। इसके बाद मेहरकी शादी शेर अफगनके साथ हो गयी। यह शादी अकबरशाह के षड्यन्त्रका फल थी। यद्यपि सलीमको निरस्त होना पड़ा, लेकिन उन्होंने आशाका त्याग न किया। सलीमकी चित्तवृत्ति लुत्फुन्निसा के नखदर्पणवत् थी। वह समझ गयी कि शेर अफगनके जीवनकी खैरियत नहीं और सलीमकी महिषी मेहर ही होगी। लुत्फुन्निसाने सिंहासनकी आशा त्याग दी।

विचक्षण मुगल-सम्राट् अकबरकी परमायु पूरी हुई। जिस प्रचण्ड सूर्यकी प्रभा तुर्कीसे लेकर ब्रह्मपुत्र तक प्रदीप्त थी, उस सूर्य का अस्त हुआ। इस समय लुत्फुन्निसाने आत्मप्राधान्यकी रक्षाके लिये एक दुःसाहसिक संकल्प किया।

राजपूत राजा मानसिंहकी बहन सलीमकी प्रधान महिषी थी। खुसरू उनके पुत्र हैं। एक दिन उनके साथ अकबर बादशाहकी बीमारीकी बात चल रही थी जिस सम्बन्धमें शीघ्र ही बादशाहकी