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तृतीय खण्ड
 

मोतीने हँसकर कहा,—“लुत्फुन्निसा क्या नहीं कर सकती? मेहर मेरी बचपनकी सखी है—कल ही बर्द्धमान जाकर दो दिन उसकी अतिथि बनकर रहूँगी।”

पे०—यदि मेहरुन्निसा बादशाहकी अनुरागिनी न हो तो क्या करोगी?

मो०—पिताजी कहा करते थे,—“क्षेत्रे कर्म विधीयते।”

दोनों कुछ देर चुप हो रहीं। हलकी मुस्कराहटसे मोती बीबीके होठ खिल रहे थे। पेशमन्‌ने फिर पूछा,—“हँसती क्यों हो?”

मोतीने कहा,—“एक खयाल मनमें आ गया।”

पे०—“कैसा खयाल?”

मोतीने यह पेशमनको न बताया। हम भी उसे पाठकोंको न बतायेंगे। बादमें प्रकट करेंगे।

 


:३:

प्रतियोगिनीके घर

“श्यामादन्या न हि न हि प्राणनाथा धर्मास्ति।”
—उद्धवदूत।

[१]

शेर अफगन इस समय बंगालकी सूबेदारीमें बर्द्धमानमें रहते थे; मोती बीबी बर्द्धमानमें आकर शेर अफगनके महलमें उतरी। शेर अफगनने सपरिवार उसकी अभ्यर्थना कर बड़े आदरके साथ आतिथ्य किया। जब शेर अफगन और उसकी स्त्री मेहरुन्निसा आगरेमें रहते थे तो उनका मोती बीबीसे काफी परिचय था! मेहरुन्निसासे तो वास्तवमें प्रेम था; दोनों बाल्यसखी थीं; बादमें

  1. अनुवादक की भ्रान्ति। मूलमें है:

    “श्यामादन्यो नहि नहि नहि प्राणनाथो ममास्ते।”
    उद्धवदूत।