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कपालकुण्डला
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दोनों ही साम्राज्यलाभके लिए प्रतियोगिनी हुई। इस समय दोनोंके एकत्र होनेपर उनमें एक मेहरुन्निसा अपने मनमें सोच रही थी—“भारतवर्षका कर्त्तव्य विधाताने किसके भाग्यमें लिखा है? विधाता जानते हैं, सलीमशाह जानते हैं, और तीसरा यदि कोई जानता होगा, तो लुत्फुन्निसा जानती होगी। देखें, लुत्फुन्निसा इस बारेमें कुछ बताती है या नहीं!” इधर मोती बीबी भी मेहरका हृदय टटोलना चाहती हैं।

मेहरुन्निसाने उस समय समूचे हिन्दुस्तानमें प्रधान रूपवती और गुणवतीके रूपमें ख्याति प्राप्त की थी। वास्तवमें संसारमें वैसी कम स्त्रियोंने जन्म लिया था। सौंदर्यका वर्णन करनेवाले इतिहासकारोंने अपने इतिहासमें उसे अद्वितीय सुन्दरी बताया है। उस समयकी विद्यामें कितने ही पुरुष उस समय उसकी बराबरी नहीं कर सकते थे। नृत्य-गीतमें मेहर अद्वितीय थी; कविता-रचना या तूलिका-कलामें वह लोगोंको मुग्ध कर देती थी। उसकी सरस वार्ता उसके सौंदर्यसे भी अधिक मोहक थी। मोती बीबी भी इन सब गुणोंमें न्यून न थी। आज ये दोनों ही चमत्कारिणी प्रतियोगिनियाँ एक दूसरेके मनकी थाह लेनेके लिए बैठी हैं।

मेहरुन्निसा खास कमरेमें बैठी तस्वीर बना रही थी। मोती मेहरकी पीठकी तरफ बैठी तस्वीर देख रही थी और पान चबा रही थी। मेहरुन्निसाने पूछा—“तस्वीर कैसी हो रही है?” मोती बीबीने उत्तर दिया—“तुम्हारे हाथकी तस्वीर जैसी होनी चाहिए वैसी ही हो रही है! दुःख यही है कि कोई तुम्हारी बराबरीका कलाकार नहीं है।”

मेह०—“अगर यही बात हो, तो इसमें दुःख किस बातका है?”

मोती—“तुम्हारी बराबरीका यदि कोई होता, तो तुम्हारे इस चेहरेका आदर्श रख सकता।”