पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
कपालकुण्डला
७६
 

न्निसा हृदयमें तुम्हारा ध्यान करेगी। प्रयोजन होनेपर उनके लिए प्राण तक विसर्जन कर सकती है। लेकिन अपना कुल और मान समर्पण नहीं कर सकती। इस दासीका स्वामी जब तक जीवित है, तब तक वह दिल्लीश्वरको मुँह नहीं दिखा सकती और यदि दिल्लीश्वर द्वारा मेरे पतिका प्राणान्त होगा तो इस जन्ममें स्वामीहन्ता के साथ मिलन हो न सकेगा।”

यह कहकर मेहरुन्निसा अपने स्थानसे उठकर खड़ी हो गयी। मोती बीबी आश्चर्यान्वित होकर रह गई। लेकिन विजय मोती बीबीकी ही हुई। मेहरुन्निसाके हृदयका भाव मोती बीबीने निकाल लिया। मोती बीबीके हृदय की आशा या निराशाकी छाँह मेहरुन्निसा पा न सकी। जो अपनी विलक्षण बुद्धिसे बादमें दिल्लीश्वर की ईश्वरी हुई, वह बुद्धि-चातुरीमें मोती बीबीके सामने पराजिता हुई। इसका कारण? मेहरुन्निसा प्रणयशालिनी है और मोती बीबी केवल स्वार्थपरायणा।

मनुष्य-हृदयकी विचित्र गतिको मोती बीबी खूब पहचान सकती है। मेहरुन्निसाके बारेमें हृदयमें आलोचना कर जिस सिद्धान्तपर वह उपनीत हुई, अन्तमें वही सिद्ध हुआ। वह समझ गई कि मेहरुन्निसा वास्तव में जहाँगीरकी प्रणयानुरागिनी है; अतएव नारी दर्पवश अभी चाहे जो कहे, कालान्तरमें सुयोग उपस्थित होनेपर वह अपने मनकी गतिको रोक न सकेगी। बादशाह अपनी मनोकामना अवश्य सिद्ध करेंगे।

इस सिद्धान्तपर उपनीत होकर मोती बीबीकी सारी आशा निर्मूल हो गयी। लेकिन इससे क्या मोती बहुत दुखी हुई? यह बात नहीं। इसके बदले उसने स्वयं कुछ सुखका अनुभव ही किया। हृदयमें ऐसा भाव क्यों उदित हुआ, मोती स्वयं भी पहले समझ