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तृतीय खण्ड
 

न सकी। उसने आगरेके लिए यात्रा की; राहमें कितने ही दिन बीते। इन कई दिनोंमें वह अपने चित्तके भावको समझती रही।

 


:४:

राज निकेतनमें

“पत्नी भावे आर तुमि भेवो ना आमारे”
—वीराङ्गना काव्य।

मोती बीबी यथा समय आगरे पहुँची। अब इसे मोती कहनेकी आवश्यकता नहीं है। इन कई दिनोंमें उसकी मनोवृत्ति बहुत कुछ बदल गयी थी। उसकी जहाँगीरके साथ मुलाकात हुई। जहाँगीरने पहलेकी तरह उसका आदर कर उसके भाईका कुशलसंवाद और राहकी कुशल आदि पूछी। लुत्फुन्निसाने जो बात मेहरुन्निसासे कही थी, वह सच हुई। अन्यान्य प्रसङ्गके बाद बर्द्धमानकी बात सुन कर जहाँगीरने पूछा—‘कहती हो कि मेहरुन्निसाके पास दो दिन तुम ठहरी, मेहरुन्निसा मेरे बारेमें क्या कहती थी?” लुत्फुन्निसाने अकपट हृदयसे मेहरुन्निसाके अनुरागकी सारी बातें कह सुनायी। बादशाह सुनकर चुप हो रहे। उनके बड़े-बड़े नेत्रोंमें एक बिन्दु जल आकर ही रह गया।

लुत्फुन्निसाने कहा—“जहाँपनाह! दासीने शुभ संवाद दिया है। अभी भी दासीको किसी पुरस्कारका आदेश नहीं हुआ।”

बादशाहने हँसकर कहा—“बीबी! तुम्हारी आकाँक्षा अपरिमित है।”

लु०—“जहाँपनाह! दासीका कुसूर क्या है?”