पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

:२:

किनारेपर

“Ingratitude! Thou marble-hearted friend!”
—King Lear

आरोहियोंकी स्फूर्तिव्यंजक बातें समाप्त होनेपर नाविकोंने प्रस्ताव किया कि ज्वारमें अभी थोड़ा और विलम्ब है, अतः इस अवसरमें यात्री लोग सामनेकी रेतीपर अपने आहार आदि का आयोजन करें। इसके बाद ही ज्वार आते ही स्वदेशकी तरफ यात्रा करनी होगी। आरोहियोंने यह सलाह मान ली, इसपर मल्लाहोंके नावको किनारे लगानेपर, आरोहीगण किनारे उतरकर स्नानादि प्रातः कृत्य पूरा करने लगे।

स्नानादिके बाद रसोई बनाना एक दूसरी विपत्ति साबित हुई। नावपर खाना बनानेके लिये आग बालनेकी लकड़ी न थी। बाघ आदि हिंस्र जन्तुओंके भयसे ऊपर जाकर लकड़ी काट लानेको कोई तैयार न हुआ। अन्तमें सबका उपवास होनेका उपक्रम होनेका समय देखकर वृद्धने युवकसे कहा—“बेटा, नवकुमार! अगर तुम इसका कोई उपाय न करोगे, तो हम सब भूखों मर जायेंगे।”

नवकुमारने कुछ देरतक चिन्ता करनेके बाद कहा—“अच्छा, जाता हूँ, कुदाल दे दो और दाव लेकर एक आदमी मेरे साथ चले।”

लेकिन कोई भी नवकुमारके साथ जानेको तैयार न हुआ।