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कपालकुण्डला
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लुत्फुन्निसा इसका कोई जवाब न दे घरसे बाहर हुई। सप्तग्राम में जिस जनहीन उपप्रान्तमें नवकुमार रहते हैं, वह उसी तरफ चली। वहाँ पहुँचते-पहुँचते उसे रात होगयी। नवकुमारके घरके समीप ही एक घना जंगल है; पाठकोंको यह याद रह सकता है। उसीके किनारे पहुँचकर वह एक पेड़के नीचे बैठ गयी। कुछ देर बैठ, वह अपने औत्साहसिक कार्यके बारेमें सोचने लगी। घटनाक्रम अपूर्व रूपमें उसका सहायक हो गया।

लुत्फुन्निसा वहाँ बैठी थी, वहाँसे उसे बराबर उच्चरित होनेवाला कोई कण्ठस्वर सुनाई पड़ा। उसने उठकर चारों तरफ देखा, एक रोशनी जलती दिखाई दी। लुत्फुन्निसाका साहस पुरुषसे भी बढ़कर था। जहाँसे रोशनी आ रही थी, वह उधर ही चली। पहले पेड़की आड़से देखा, बात क्या है! उसने देखा कि रोशनी यज्ञ-होमकी है और मनुष्य-कंठ मन्त्रोच्चारण है। मन्त्रमें केवल एक नाम सुन पड़ा। परिचित नाम सुनते ही, लुत्फुन्निसा यज्ञकर्ताके पास जा बैठी।

इस समय वह वहीं बैठी रही। पाठकोंने बहुत कालसे कपालकुण्डलाकी खबर नहीं पायी है। अतः कपालकुण्डलाकी खबर जरूरी है।