चौथा खण्ड
:१:
शयनागार में
“अधिकार बेड़ी भाँगी, एकमम मिनति”
—ब्रजाङ्गना काव्य
लुत्फुन्निसाके आगरा जाने और फिर सप्तग्राम लौटकर आनेमें कोई एक साल हुआ है। कपालकुण्डला एक वर्षसे नवकुमारकी गृहिणी है। जिस दिन प्रदोषकालमें लुत्फुन्निसा जंगल आई उस समय कपालकुंडला कुछ अनमनी-सी अपने शयनागारमें बैठी है। पाठकोंने समुद्रतटवासिनी, आलुलायित केशा और भूषणविहीना जिस कपालकुण्डलाको देखा था, अब वह कपालकुंडला नहीं है। श्यामासुन्दरीकी भविष्यवाणी सत्य हुई है। पारसमणिके स्पर्शसे योगिनी गृहिणी हुई है, इस समय वह सारे रेशम जैसे रूखे लम्बे बाल, जो पीठपर अनियन्त्रित फहराया करते थे अब आपसमें गुँथकर वेणी-रूपमें शोभा पा रहे हैं। वेणीरचनामें भी बहुत कुछ शिल्प-परिपाटी है, केशविन्यासमें सूक्ष्म केशीकार्य श्यामासुन्दरीके विन्यास-कौशलका परिचय दे रहा है। फूलोंको भी छोड़ा नहीं गया है, वे भी वेणीमें चारों तरफ खूबसूरतीके साथ गूँथे हुए हैं। सरपरके बाल भी समान ऊँचाईमें नहीं, बल्कि मालूम होता है, कि आकुंचनयुक्त कृष्ण तरंग मालाकी तरह शोभित हैं। मुखमंडल
- ↑ अनुवादक की भ्रान्ति। मूलमें है:
राधिकार बेड़ी भाङ, ए मम मिनति।
ब्रजाङ्गना काव्य