इनके अतिरिक्त पाद-टिप्पणियों में जो ( ख ) प्रति में के अधिक दोहे दिए गए हैं, उनमें से.पृष्ठ ६५ के दोहे १८, १६ और २० तथा पृष्ठ ७५ का दोहा ३८ उस प्रति और गुरु ग्रंथ साहब दोनों में समान है। इस प्रकार दोनों हस्त लखित प्रतियों और गुरु ग्रंथ-साहब में ४८ दोहे और ५ पद ऐसे हैं जो दोनों में समान हैं। इनको छोड़ कर ग्रंथ-साहब में जो दोहे या पद अधिक मिले हैं, वे परिशिष्ट में दे दिए गए हैं। इनमें १८२ दोहे और २२२ पद हैं। इस प्रकार इस संस्करण में कबीरदासजी के दोहों और पदों का अत्यंत प्रामाणिक संग्रह कर दिया गया है। यह कहना तो कठिन है कि इस संग्रह में जो कुछ दिया गया है,उसके अतिरिक्त और कुछ कबीरदासजी ने कहा ही नहीं, पर इतना अवश्य है कि इनके अति-रिक्त और जो कुछ कबीरदास जी के नाम पर मिले, उसे सहसा उन्हीं का कहा हुआ तब तक स्वीकार नहीं कर लेना चाहिए, जब तक उसके प्रक्षिप्त न होने का कोई दृढ़ प्रमाण न मिल जाय।
इस संबंध में ध्यान रखने योग्य एक और बात यह है कि इस संग्रह में दिए हुए दाहों आदि की भाषा और कबीरदासजी के नाम पर बिकनेवाले ग्रंथों में के पदों आदि की भाषा में आकाश-पाताल का अंतर है। इस संग्रह के दोहों आदि की भाषा भाषा-विज्ञान की दृष्टि से कबीरदासजी कं समय के लिये बहुत उपयुक्त है और वह हिंदी के १६ वों तथा १७ वीं शताब्दी के रूप के ठीक अनुरूप है। और इसी लिये इन पदो और दोहों को कबीर दास जी रचित मानने में आपत्ति नहीं हो सकती। परंतु कबीर दास जी के नाम पर आजकल जो बड़े बड़े ग्रंथ देखने में आते हैं उनकी भाषा बहुत ही आधुनिक और कहीं कहीं तो बिलकु आजकल की खड़ी बोली ही जान पड़ती है। आज से प्रायः तीन साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व कबीरदासजी आजकल की सी भाषा लिखने में किस प्रकार समर्थ हुए होंगे,यह विषय बहुत ही विचारणीय है।