पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/२५१

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पदावली

 मन कै मैलौ बाहरि ऊजलौ किसौ रे,
खांडे की धार जन कौ धरम इसौ रे ॥ टेक ॥
हिरदा कौ बिलाव नैनं बग ध्यांनी,
ऐसी भगति न होइ रे प्रांनी ॥
कपट की भगति करै जिन कोई,
अंत की बेर बहुत दुख होई ।।
छांडि कपट भजौ रांम राई,
कहै कबीर तिहूं लोक बडाई ।। २३३ ॥

 चोखौ बनज ब्यौपार करीजै,
आइनैं दिसावरि रे रांम जपि लाहौ लीजै ॥टेक॥
जब लग देखौं हांट पसारा,
उठि मन बणियों रे,करि ले बणज सवारा ॥
बेगे हो तुम्ह लाद लदांनां,
औघट घाटा रे चलनां दूरि पयांनां ।।
.खरा न खोटा नां परखानां,
लाहे कारनि रे सब मूल हिरांनां ।।
सकल दुनी मैं लोभ पियारा,
मूल ज राखै रे सोई बनिजारा ॥
देस भला परिलोक बिरांनां,
जन दाइ चांरि नरे पूछौ साध सयांनां ।
सायर तीर न वार न पारा,
कहि समझावै रे कबीर बणिजारा ॥ २३४ ॥

 जौ मैं ग्यांन बिचार न पाया,
तौ मैं यौंहीं जन्म गंवाया ।। टेक ।।