मैं समझता हूँ कि यह बात निश्चित सी है कि पुनीत काशीधाम कवीर साहव का जन्मस्थान, उनकी माता का नाम नीमा और पिता का नाम नीरू था। दोनों जाति के जोलाहे थे। कहा जाता है कि वे इनके औरस नहीं पोष्य पुत्र थे। नीरू जब अपनी युवती प्रिया का द्विरागमन कराकर गृह को लौट रहा था, तो मार्ग में उसको काशी अंकस्थित लहर- तारा के तालाव पर एक नवजात सुंदर वालक पड़ा हुआ दृष्टिगत हुआ। नीमा के कलंक-भय से भीत हो मना करने पर भी नीरू ने उस नवजात शिशु को ग्रहण किया और वह उसे घर लाया। वही वालक पीछे इन दयामय दंपति द्वारा परिपालित होकर संसार में कबीर नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह किसका वालक था, लहरतारा के तालाब पर कैसे पाया, इन कतिपय पंक्तियों को पढ़कर स्वभावतः यह प्रश्न हृदय में उदय होता है। इसका उत्तर कवीर पंथ के भावुक विश्वासी विद्वान् इस प्रकार देते हैं कि संवत् १४५५ की ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा को जव कि मेवमाला से गगनतल समाच्छन्न था, विजली कांध रही थी, कमल खिले थे, कलियों पर भ्रमर गूंज रहे थे, मोर, मराल, चकार कलरव करके किसी के स्वागत की वधाई गा रहे थे, उसी समय पुनीत काशीधाम के तरंगायमान लहर तालाब पर एक अलौकिक घटना हुई और वह अलौकिक घटना इसके अति- रिक्त और कुछ नहीं थी कि उक्त तालाब के अंक में विकसे हुए एक सुंदर कमल पर अाकाश-मंडल से एक महापुरुष उतरा। महापुम्प यही कबीर बालक था, जिसने कुछ घड़ियां पीछे पुण्यवती नीमा की गांद और भाग्यवान नीम का सदन समलंगत किया। उक्त प्रश्न का एक और उत्तर दिया जाता है, किंतु यह
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