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पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१०२

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जा कारन जग हँढ़िया सो तो घट ही माहिं। परदा दीया भरम का तात सूझै नाहिं ॥ १९ ॥ समझे तो घर में रहे परसा पलक लगाय । तेरा साहेब तुझ में अनत कहूँ मत जाय ॥ २० ॥ जेता घट तेता मता बहु वानी बहु भेख । सब घट व्यापक है रहा सोई श्राप अलेख ॥ २१॥ भूला भूला क्या फिरे सिर पर बँधि गई वेल । तेरा साँई तुझ में ज्यों तिल माहीं तेल ॥ २२ ॥ ज्यों तिल माहीं तेल है ज्यों चकमक में श्रागि। तेरा साँई तुज्म में जागि सके तो जागि ॥ २३ ॥ ज्यों नैनन में पृतरी यों खालिक घट माहि। मृरख लोग न जानहीं बाहर हूँढन जाहिं ॥ २४ ॥ पावक रुपी साँइयाँ सब घट रहा समाय । चित चकमक लागे नहीं नातं युझि बुझि जाय ॥ २५ ॥ शब्द कविरा शब्द मीर में विन गुन बाज नॉन । बाहर गीतर रमि रहा नातं जुटी नॉन ॥२॥ मन्द मन्द या अंना मार मन्द विनय । जा सम्दै मान मिले मोह मद गनग ॥ २७॥ पा, मन्द मुंगराम है, एक मन्द गगम। पर गद गंधन पटक मन्द गम कॉम॥२८॥ गन्द मच गय मोगर भान पांग। Arz का परमय कर गाल रदयगन आरमोग। Siminant