पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उपदेशनिरत थे । जन-साधारण के सम्मुख वे मुझे उस र दिखलाई पड़ते हैं, जव उनको सुध बुध हो गई थी और वे तिलक इत्यादि लगाकर राम नाम जपने में लीन हे थे। यह भी लिखा मिलता है कि इसी समय उनसे कहा कि तुम निगुरे हो इसलिये जब तक तुम कोई गुरु न लोगे, तब तक तिलक मुद्रा देने अथवा राम राम जप पूरे फल की प्राप्ति न होगी। यह एक हिंदू विचार है। एक अच्छे पथ-प्रदर्शक से अभिलपित.मार्ग में सहायता : करने के सिद्धांत की ओर संकेत है। कथन है कि व साहव पर लोगों के इस कहने का प्रभाव पड़ा और गुरु करने की आवश्यकता समझ पड़ी। ये बातें भी प्रकट करती हैं कि जिस काल की ये घटनाएँ हैं, समय कवीर सुवोध हो चुके थे और वाल्यावस्था उ हो गई थी। मंत्र-ग्रहण कवीर साहव हिंद थे या मुसल्मान, वे स्वामी रा जी के शिष्य वैष्णव थे, या किसी मुसल्मान फकीर वं सूफी, इस विषय में "कवीर ऐड दी कवीर पंथ के अध्याय में उसके विद्वान रचयिता ने एक अच्छी विवेचा है। मैं उनके कुल विचारों को यहाँ नहीं उठा सकता। उनके मुख्य स्थानों को उठाऊँगा और इस बात की मी करूँगा कि उनके विचार कहाँ तक युक्तिसंगत हैं। उक्त ग्रंथ के २५-२६ पृष्ट में एक स्थान पर उन्होंने लिख "खजीनतुल अस्फिया में कहा गया है कि शेख १-यह पुस्तक मौलवी गुलाम सरवर की बनाई हुई १८६८ ई० में लाहौर में छपी थी।