पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१६६

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(१४८ ) मृरख को समझावते शान गाँटि को जाय । कोरला होद न ऊजगे नी मन सावुन लाय ॥६२७।। मृरख से क्या बोलिए सट से कहा बसाय । पाइन में क्या मारिए चोखा तीर नसाय ॥२८॥ पल में परलय वौतिया लोगन लगी तमारि । आगिल सोच निवारि के पाछे को गोहारि ॥३२९।। आहार बट्टा मोटा चरपरा जिला सय रस लय । चाग कुनिया मिलि गई पहा किम का देय ॥३३०।। पट्टा मीठा देग्यि के रसना मेल नीर । जब लग मन पाया नहीं काँचा निपट कधीर ।।१३।। बकरी पानी ग्यान है, नाफी काढ़ी माल । जो बकरी का मान है. नाका कोन एयाल ||३२|| दिन कागजा रहत है, गत हनत : गाय । पर नागृन मा. चंदगी कल, यां घुमी गुदाय ||३३३॥ गुम गाना लांचरी मारि परा टुक. नीन । मांग गया माय फर गग स्टार कान ||३|| सा मगा मा टंदा पानी पीय। मिशिगनी नपड़ी मन ललनाने जाय ॥३३॥ का मांमला का वी गटी बंग। गृती मांगन में मी सोनिन या l प्राचीन मानी मागी माती मां गंगार। नागा नपही रन गा पाप 120