पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१८१

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( १६३ ) में सव है कर्ता सकल समाना। भेद विना सव भरम परे कोउ वूझै संत सुजाना ॥३॥ तेहि साहव के लागो साथा । दुइ दुख मेटि कै होहु सनाथा ॥ दशरथ कुल अवतरि नहिं आया। नहि लंका के राय सताया ।। नहिं देवकि के गर्भहिं आया। नहीं यशोदा गोद खिलाया ।। पृथ्वी रमन दमन नहिं करिया । वैठि पताल नहीं बलि छलिया ॥ नहिं बलिराय माँड़ी रारी। नहिं हिरनाकुस वधल पछारी ।। रूप वराह धरणि नहिं धरिया। छत्री मारि निछत्री न करिया ।। नहिं गोवर्धन कर पर धरिया। नहीं ग्वाल सँग वन वन फिरिया॥ . . गंडक शालग्राम न शीला । - मत्स्य कच्छ खै नहिं जल हीला ।। द्वारावती शरीर न छाँड़ा। लै जगनाथ पिंड नहिं गाड़ा॥ ..कहहि कबीर पुकारि कै वा पंथे मत भूल । जेहि राखे अनुमान करि थूल नहीं असथूल ॥४॥ संतो पावै जाय सो माया । . ... है प्रतिपाल काल नहिं वाके ना कहुँ गया न आया ॥ . ..क्या मकसूद मच्छ कछ होना शंखासुर न सँघारा।। .. अहै वालु द्रोह नहिं वाके कहहु कौन को मारा॥