पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२०६

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( १८८ ) नाम अमल उतरै ना भाई । औ अमल छिन छिन चढ़ि उतरै नाम अमल दिन बढ़े सवाई ॥ देखत चढ़े सुनत हिय लागै सुरत किए तन देत घुमाई । पियत पियाला भए मतवाला पायो नाम मिटी दुचिताई ॥ जो जन नाम अमल रस चाखा तर गइ गनिका सदन कसाई। कह कवीर गूंगे गुड़ खाया विन रसना का करै बड़ई ॥३७॥ शब्द-महिमा साधो शब्द साधना कीजै। जासु शब्द ते प्रगट भए सब सब्द सोई गहि लीजै ॥ शब्दहिं गुरू शब्द सुनि सिख मे शब्द से विरला बुझे । साइ सिप्य और गुरु महातम जेहि अंतरगत सूझै । शब्द वेद पुरान कहत है शब्द सब ठहराव । शब्दै सुर मुनि संत कहत हैं शब्द भेद नहिं पात्र । शब्द मुनि सुनि भेख धरत हैं शब्द कहै अनुरागी। पट दरशन सब शब्द कहत हैं शब्द कहै वैरागी ।। शब्दै माया जग उतपानी शन्दै केर पसारा। कह कबीर जहँ शब्द होत है तवन भेद है न्यारा ॥३८॥ नाधा शब्द सवन से न्यारा, जानेगा कोइ जानन हारा॥ जोगी जतो तपी संन्यासी, अंग लगावै छारा। मूल मंत्र सतगुरु दाया विन, कैसे उतर पारा ।। जोग जा ग्रन नेम साधना, फर्म धर्म व्यापारा। नो तो मुक्ति सवन ने न्यारी, करन छुटे जम द्वारा॥ निगम नंति जा गुन गाव, शंकर जाग अधारा। ध्यान बात जहि प्रामा-विरण, सो प्रभु अगम अपारा॥