पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १९८ ) कहें फीर पुकारि सुना मनभावना । हंसा चल] सत लोक बहुरि नहि श्रावना ।।६।। हँसा लोक हमारे अइहो, ताते अमृत फल तुम पइहो ॥ लोक हमारा अगम दूर है, पार न पाये कोई। अति श्राधीन होय जो कोई, ताको देउँ लखाई ।। मिरत लोक से हंसा आप, पुहुप दीप चलि जाई । अंबु दीप में सुमिरन करिहा, तब वह लोक दिखाई ॥ माटी का पिंड छूट जायगा, श्री यह सकल विकारा । ज्यों जल माहिं रहत है पुरइन, ऐसे हंस हमारा ।। लोक हमारे अइहां हंसा, तब सुख पदही भाई । मुखसागर अमनान करोगे, अजर अमर हैं जाई ।। को कवीर मुना धमदासा, हंसन करी बधाई। सेत सिंहासन बैठक देहां, जुग जुग राज कराई ॥३३॥ सतगुरु महिमा और लक्षण चल सतगुरु की हाट मान बुध लाइप । फर, साहव सां इन परम पद पाइपः ।। मनगुन सब कह दीन देन कट नहिं गयो। मअिभागिन नागिछारिनुख दुख लाil | गां पिया के महल रिया अंग ना रची। गोपट हिय हाय मान लजा भी ।। जहाँ गल मिलहिली चढ़ी गिरि गिरि पर्ग। उटर ममापि ममागिनानागं घर्ग।। पिया मिलनी नाकान राज माम मिलो किन जायमा दिन माज