मिलते हैं कि 'हम घर सूत तनहिं नित ताना' इत्यादि जिनसे उनका यही व्यवसाय करके अपना जीवन विताना सिद्ध होता है। इस विषय में उनका एक बड़ा सुंदर शब्द है। उसे नीचे लिखता हूँ- मुसि मुसि रोवै कबीर की माय, प चालक कैसे जीवहिं रघुराय । तनना बुनना सब तज्यो है कबीर, हरि का नाम लिखि लिया शरीर । जव लग तागा बाहर ही, तब लग विसरै राम सनेही । श्रोछी मति मेरी जात जुलाहा, हरि का नाम लला में लाहा । कहत कबीर सुनहु मेरी माई, हमारा इनका दाता एक रघुराई । श्रादि ग्रंथ, पृष्ट २० किंतु इनके विवाह और संतानोत्पत्ति के विषय में मतांनरः है। कबीरपंथ के विद्वान कहते हैं कि लोई नाम की रबी उनके ग्माय याजन्म रही, परंतु उनसे उन्नाने विवाह नहीं किया । इनी प्रकार कमाल उनके पुन और कमाली उनकी पुत्री विषय में भी वे लोग विचित्र यात करते हैं। उनका कथन : कि ये दोनों अन्य की मन्नान थे, जो मृतकहा जाने के कारण व्याग दिए गए थे परंतु यावार साय ने उनका पुनःजिलाया और पाता इनी लिये ये दोनों उनकी मंगान कर पायात गए । या पदाचिन व लोग मिलिय याने कि कार मात्र नेवी मंगा रा रा । यथा- नागिनमानीन गन, नर पाए। भन्दि गिनियान में, दिम नकार !!
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