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पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२३७

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( २१९ ) जीवन ऐसो सपना जैसो जीवन सपन समाना। शब्द गुरू उपदेश दियो, तै छाँड्यो परम निधाना ॥ जोतिहिं देख पतंग हलसै, पसु नहिं पेखै आगी। कास क्रोध नर मुगुध परे हैं, कनक कामिनी लागी । सय्यद शेख किताव नीरखै, पंडित शास्त्र विचारै। सतगुरु के उपदेश विना, तुम जानि कै जीवहिं मारै ।। करो विचार विकार परिहरी, तरन तारनै सोई। कह कवीर भगवंत भजन करु द्वितीया और न कोई ॥१२५॥ आपन आस किए बहुतेरा । काहु न मर्म पाव हरि केरा॥ इंद्री कहा करै विश्राम । सो कहँ गए जो कहते राम ।। सो कह गए होत अज्ञान । होय मृतक श्रोहि पदहिं समान॥ रामानंदरामरस छाके। कहकवीर हम कहि कहिथाक॥१२६॥ कहो हो अंवर कासौं लागा। चेतनहारे चेतु सुभागा ॥ अंवर मध्ये दीसै तारा । एक चेतै दूजे.चेतवनहारा ॥ जेहि खोजै सो उहवाँ नाहीं। सोतो आहि अमर पद माहीं॥ कह कवीर पद वूमै सोई । मुख हृदयाजाकर एक हाई॥१२७॥ चावू ऐसा है संसार तिहारो, है यह कलि व्यवहारा । को अब अनख सहै प्रति दिनको नाहिन रहन हमारा॥ सुमृत सुभाव सबै कोइ जानै हृदया तत्त न बूझै। निरजिव आगे सरजिव थापै लोचन कछुव न सूझै॥ तजि अमृत विख काहें अचवो गाँठी वाँधो खोटा। चोरन को दिन पाट सिंहासन साहुहिं कीन्हो श्रोटा ।। कह कवीर झूठो मिलि झूठा ठगही ठग व्यवहारा । तीन लोक भरपूर रह्यो है नाहीं है पतियारा ॥१२॥ नैनन आगे ख्याल घनेरा। . अरध उरध विच लगन लगी है क्या संध्या रैन सवेरा। जेहि कारन जग भरमत डोले सो साहब घट लिया. वसेरा॥